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पत्थर में भगवान

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)
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ये महज विश्वास है
कि पत्थर में भगवान है,
परंतु यही विश्वास हमें
बताता भी है
भगवान कहाँ है?
तभी तो हम मंदिर, मस्जिद
गिरिजा, गुरुद्वारों के
चक्कर तो लगाते हैं,
परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं।
विडंबनाओं पर मत जाइये
अपने हर कठिन,
मुश्किल हालात के लिए
बिगड़े काम के लिये
भगवान को ही दोषी ठहराते हैं,
अपनी खुशी में भगवान को
शामिल करना तो दूर
याद तक नहीं करते,
सारा श्रेय खुद ले लेते हैं।
जिस भगवान का हम
धन्यवाद तक नहीं करते
कष्ट में उसी को याद भी करते हैं,
पत्थर के भगवान से
जिद करते,अड़ जाते हैं
विश्वास करके भी नहीं करते।
क्योंकि हम
खुद पर भी विश्वास कहाँ करते?
हमारे अंदर भी तो
भगवान बैठा है
यह सब जानते हैं,
उस पर जब हम
विश्वास नहीं करते,
तब पत्थर के भगवान पर
विश्वास कैसे जमा पाते?
हम तो बस औपचारिकताओं में
जीते जीते मर जाते,
अपनी पहचान भी मिटा जाते।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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