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कण कण में भगवान

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
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मन को बनाकर मंदिर अपने,
प्रभु की मूरत को बैठाना।
सबके अंदर वास प्रभु का,
बात कभी तुम भूल न जाना।।

प्रभु का कोई स्थान नही है,
और नही है कोई आकार।
खोजो तो प्रभु नित्य मिलेंगे,
लेकर भिन्न भिन्न रूप साकार।।

जिस क्षण तुमको मदद चाहिए,
तब बन प्रभु आते मददगार।
और देकर अपना कोमल स्पर्श,
वे ही लुटाते तुम पर प्यार।।

कभी वे आते मातृत्व रूप में,
देते हमको लाड़ दुलार।
माँ की आँखों में झाँको तो,
दिखेगा ईश्वर का संसार।।

कभी किसी कृतज्ञ को देखो,
दिखेंगे उसकी आँख में भगवन।
उसके भावों को गर पढ़ लो,
तब हो जायेगा प्रभु का दर्शन।।

देखो एक नन्हें से बच्चे को,
गौर से देखो भोलापन।
जहाँ नही छल ,कपट ,द्वेष,
हो ऐसे मन में प्रभु का वंदन।।

देखो हरे भरे खेतो को,
लहलहाती गेहूं,,चना की बाली।
क्षुधा उदर की शांत हो जिससे,
यही है प्रभु की मुस्कान निराली।।

अतः करो सम्मान सभी का,
ये हैं सारे जीवन दायक।
यहीँ मिलेंगे प्रभु हमारे,
ये ही हैं सृष्टि के नायक।।

परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
निवासी – धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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