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जाओ खेलो बेटियों

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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स्तब्ध है यह मन मेरा
कहीं प्राण भी अशक्त है
खो न जाए इस जहाँ में
मन में अन्तर्द्वन्द है
जन्म से ही मन है शंकित
धडकनें अब मंद है
हाथ उसके रक्त रंजित
फिर भी वह स्वच्छंद है
कहा न जाए सुना न जाएं
ऐसी उसकी दर्द गाथा
शोर पर है शोर होता
पर जहाँ निशब्द है
इस जहाँ में “सुकून” कही भी
ढूंढ दे ऐसी जगह
जहाँ उसको छू न पाए
हाथ जो उद्दंड है
जाओ खेलो बेटियों
तुम भी जहाँ में पारियां
जान जाए मान जाए
हो रही अब शिकस्त है

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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