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मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश

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सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो,
तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो!

संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों
मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो!

सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं,
अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो!

है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना
मैं कर लूंगा ये काम भी, तुम ऐतबार दे दो!

एक-दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम,
मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो!

परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन- आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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