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बच्चो को सही शिक्षा दे

संजय जैन
मुंबई

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माँ बाप का परम कर्तव्य बनता है की वो अपने बच्चो को सही तालीम के साथ संस्कार और ज्ञान दे, ताकि आने वाले समय में उन्हें अपने पैरो पर खड़ा होने के लिए कोई परेशानियो का सामना न करना पड़े। दोस्तों आज की शिक्षा व्यवस्था हमारी आने वाली पीढ़ी को पंगु बना रही है।आज दसवीं से पहले 9वी तक के छात्रों की एग्जाम व्यवस्था को खत्म कर दिया गया है, जिसके कारण शिक्षा का स्तर अब निरंतर गिरता जा रहा है। सरकार ये दबा अब जरूर कर रही है, की देश का हर नागरिक शिक्षित है परन्तु हकीकत कुछ और ही है। जो की एक भ्रहम ही पैदा करता है ? क्योकि हमने तो १ से ९ तक को सिर्फ पास करके ये बताया है, की सभी लोग कम से कम ९ तक पड़े है, भले ही उन्हें पांचवी कक्षा का ज्ञान न हो, परन्तु हमारी शिक्षा प्रणाली ने उन्हें ९वी का प्रमाण पत्र बिना कुछ किये ही प्रदान कर दिया। क्या इस तरह की व्यवस्था से देश और समाज का भला होने वाला है? इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सत्येंद्र दुबे जी के लेख की ओर आप सभी का ध्यान दिलाना चाहूंगा और इसे अवश्य ही अपना बहुमूल्य समय में से २ मिनट का समय निकाल कर इसे अवश्य पढिये … और चिंतन कीजिये.. क्या जो कुछ भी हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था का जो चल रहा है क्या वो सही है या नहीं। इसके लिए एक छोटा द्रष्टान दिया है दुबे जी ने वो हम आपको बताना चाहते है। जिससे इस बात को समझा जा सकता है।
प्रकृति ने सभी पंछियों की संरचना लगभग एक जैसी बनाई दो पैर दो पंजे चार से पांच अंगुलियों गर्दन और दो पंख ऐसा कोई पंछी नहीं है जिसके चार पंख होते हैं!!!
लेकिन इन सबसे अलग हटकर एक नया मुकाम हासिल किया बाज नामक पक्षी ने जिसे हम ईगल या शाहीन भी कहते हैं जिस उम्र में बाकी परिंदों के बच्चे चिचियाना सीखते हैं उस उम्र में एक मादा बाज अपने चूजे को पंजे मे दबोच कर सबसे ऊंचा उड़ जाती है ध्यान रहे पक्षियों की दुनिया में ऐसा कठिन प्रशिक्षण और ऐसी सोच किसी और की नही होती।

गणित यानी चाल दूरी और वेग के दृष्टिकोण से देखें तो मादा बाज अपने चूजे को लेकर लगभग १२ किलोमीटर ऊपर ले जाती है। हमारी आपकी “सोच” से बहुत ऊपर जितने ऊपर अमूमन जहाज उड़ा करते हैं और वह दूरी तय करने में मादा बाज ७ से ९ मिनट का समय लेती है।

उस मुकाम पर पहुंचकर वह एक परिस्थिति में स्थिर हो जाती है!!!!! और फिर यहां से शुरू होती है उस नन्हें चूजे की “कठिन परीक्षा” उसे अब यहां बताया जाएगा कि तू किस लिए पैदा हुआ है!!

तेरी दुनिया क्या है तेरी ऊंचाई क्या है तेरा धर्म बहुत ऊंचा है और फिर मादा बाज उसे अपने पंजों से छोड़ देती है…….

धरती की ओर ऊपर से नीचे आते वक्त लगभग २ किलोमीटर उस चूजे को हवा नहीं होती कि उसके साथ क्या हो रहा है ७ किलोमीटर के अंतराल के आने के बाद उस चूजे के पंख जो कंजाइन से जकड़े होते हैं वह खुलने लगते हैं…..

लगभग ९ किलोमीटर आने के बाद उनके पंख पूरे खुल जाते हैं यह जीवन का पहला दौर होता है जब बाज का बच्चा पंख फड़फड़ाता है…

अब धरती से वह लगभग ३००० मीटर दूर है लेकिन अभी वह उड़ना नहीं सीख पाया है, अब बिल्कुल करीब आता है धरती के जहां से वह देख सकता है उसके स्वामित्व को अब उसकी दूरी धरती से बचती है महज ७ से ८०० मीटर लेकिन उसका पंख अभी इतना मजबूत नहीं हुआ है की वो उड़ सके।

धरती से लगभग ४ से ५०० मीटर दूरी पर उसे अब लगता है कि उसके जीवन की शायद अंतिम यात्रा है फिर अचानक से एक पंजा उसे आकर अपनी गिरफ्त मे लेता है और अपने पंखों के दरमियान समा लेता है।

यह पंजा उसकी मां का था जो ठीक उसके उपर चिपक कर उड़ रही थी….. और यह बाज के चूजे की पहली ट्रेनिंग थी और ये निरंतर चलती रहती है जब तक कि उसका बच्चा उड़ना नहीं सीख जाता….।

ये प्रशिक्षण बिल्कुल एक सैनिक की तरह होता है जो खतरनाक तो होता है किन्तु खतरा नहीं… तब जाकर दुनिया को एक शाहीन/बाज़ मिलता है जो वायु की दुनिया का अघोषित बादशाह कहा जाता है । फिर एक समय आता है जब शाहीन अपने से दस गुना अधिक वजनी प्राणी का शिकार करता है…..
हिंदी मे एक कहावत है “बाज़ के बच्चे मुंगेर पर नही उड़ते”

अपनों बच्चों को चिपका कर रखिए पर एक शाहीन की तरह उन्हें दुनियां की मुश्किलों से रूबरू कराइए…।
उन्हे लड़ना सिखाइए बिना आवश्यकता के संघर्ष करना सिखाइए……।
और यदि समय रहते आपने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आपके बच्चे एक दम अपने आप को आने वाले समय में असहाय महसूस करेंगे और रोयेंगे उस समय के लिए और उन लोगो की व्यवस्था के लिए जिन्होंने ये निन्दनिय कार्य किया है। जब पक्षी और बन के प्राणी संघर्ष करके मुकाम को हासिल करते है। जिनको तो पढ़ने लिखने का ज्ञान नहीं होता परन्तु वो सांसारिकता की व्यवहारिकता को समझते है और अपने अनुसार ज्ञान को धारण करते है। और हम मनुष्य जिनको प्रकृति ने सब कुछ दिया है फिर भी हम…… सही गलत का आकलन नहीं कर पाते और पंछी इसे सही रूप से अपनाते है ।
ये टीवी के रियलिटी शो और अंग्रेजी स्कूल के बसों ने मिल कर आप के बच्चों को बाॅइलर मुर्गे जैसा बना दिया है। जिसके पास मजबूत टंगड़ी तो है पर चल नही सकता, वजनदार पंख तो है ,पर उड़ नही सकता……
पंख तो सड़क के किनारे कटने वाले मुर्गों के भी देती है प्रकृति !
यदि इस तरह की व्यवस्थाएं हमारे देश में बिना पढ़े लिखे उन्हें आगे बढ़ाते गए तो क्या हाल होना। आने वाले समय में ये बात बहुत ही सोचनी है की आपके बच्चे क्या कर सकेंगे। अब फैसला करिए आपके बच्चे क्या बनेंगे??
पुनः देश के सभी बच्चों को बाल दिवस की शुभ कामनाएं और बधाई …..

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लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।


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