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बिटियाँ नहीं जान पाती

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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माँ अब मेरे लिए
काजल नहीं बनाती
ये सब बचपन की बातें थी
कि मुझको नजर ना लगे |

लेकिन मै तो अभी छोटी हूँ
माँ की नज़रों मे
भाग दौड़ की जिन्दगी मे
मेरा लाड-दुलार भी
खो सा गया है |

मै सुनना चाहती हूँ
मेरे बचपन के नाम की
मुझे बुलाने के लिए माँ की
मीठी पुकार और
गरमा गरम रोटी
रात दूध पिया की नहीं
माँ की फिक्र को।

किंतु अब
दीवार पर माला डली है
मेरे टपकते आंसुओं को देख कर
मेरी माँ मुझसे जैसे कह रही हो
छुप हो जा मेरी बिटियाँ |

वही फिक्र के साथ
मै ख्याल रखने वाला बचपन
वापस पाना चाहती हूँ
इसलिए माँ की तस्वीर से
मन ही मन
बातें किया करती हूँ आज भी |

मै सोचती हूँ कि
क्रूर इन्सान अब क्यों करने लगा है
भ्रूण-हत्याए
अचरज होता है की
मै जाने कैसे बच गई
माँ की ममता
क्या होती ये मै
कभी भी नहीं जान पाती
यदि मेरी भी हो जाती भ्रूण हत्या |

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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