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बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बड़ा आसान था गिरिधर,
बता दिल तोड़ कर जाना!
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

दर्द यमुना का तो सुनते,
कदम के शूल तो चुनते।
तजा पनघट तजी राधा,
तजा सारा वो याराना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

बजी वंशी बहुत प्यारी,
लगे चितवन बड़ी न्यारी।
उसे भी छोड़ बैठे तुम,
किसे दूँगी मैं अब ताना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

तड़प कर गोपियाँ रहतीं,
विरह कैसे भला सहतीं?
चमन के पुष्प हैं सूखे,
कहें तितली नहीं आना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

कुँआ भी प्यास का मारा,
हृदय मेरा रहा खारा।
नयन से मोतियाँ बिखरीं,
धरा पहने तरल बाना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

बिछायी द्यूत की क्रीड़ा,
सही जाये न यह पीड़ा।
कहूँ कैसे बनी धीरा,
यही तुमको है समझाना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

भटकती है यहाँ मीरा,
छलकते नैन से नीरा।
भिगोती शाम का आँचल,
नहीं तुम श्याम तड़पाना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

नहीं दूँगी कहीं जाने,
किवाड़े हैं नयन पट ये।
कड़ी होगी सजा अब तो,
नहीं कोई भरम लाना।
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

बड़ा आसान था गिरिधर,
बता दिल तोड़ कर जाना!
मिलन की रात में ही क्यों
मिला यह घोर नजराना?

परिचय : रजनी गुप्ता ‘पूनम चंद्रिका’
उपनाम :- ‘चंद्रिका’
पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता
माता – श्रीमती रामदुलारी गुप्ता
पति :- श्री संजय गुप्ता
जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं
शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड
व्यवसाय :- गृहणी
प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है
सम्मान :- समूहों द्वारा विजेता घोषित किया जाता रहा है। दो बार नागरिक अभिनंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मंचों पर काव्य-पाठ व लघुकथा का पाठन करती रहती हूँ। सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान हेतु सम्मान-पत्र प्रदान किया गया है। विद्यालय के समय भी अनेक पुरस्कार मिले हैं।
रचना की विधा :- अधिकतर दोहा सृजन, छंदमुक्त कविताएँ, मुक्तक, दोहा, गजल, छंद, हाइकु दोहा, गीत, गीतिका, लघुकथा, संस्मरण आदि….
घोषणा पत्र :- मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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