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ग़ज़ल

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रचयिता : शरद जोशी “शलभ”

झूठे को भी वो हाल मेरा पूछता नहीं।
भूले से भी कभी मैं उसे भूलता नहीं।।

मैंने कभी किसी को न उसमें किया शरीक।
क्या है मेरी नज़र में अगर वो ख़ुदा नहीं।।

करने लगे तू उसकी अताओं का गर शुमार।
तो ख़ुद ही कह उठेगा मुझे कुछ गिला नहीं।।

वो तो वहीं मिलेगा वहीं पर मुक़ीम है।
अपने ही दिल में तू उसे क्यूँ ढूँढता नहीं।।

लब खोल कर तो हँसता “शलभ” हूँ सभी के साथ।
दिल खोल कर ना जाने मैं कब से हँसा नहीं।।

 

परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।


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