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रचयिता : बलजीत सिंह बेनाम
जवानी यूँ ही तन्हा जाएगी तेरी गुज़र इक दिन
मोहब्बत का भँवर हूँ मैं तू मुझमे आ ठहर इक दिन
मेरे हाथों के छालों में तेरी तस्वीर है क़ायम
तेरी फ़ुरक़त में मैंने जो रखे थे आग पर इक दिन
कहाँ वो चैन पाएगा जला बस्ती ग़रीबों की
ख़ुदा उसको भी कर देगा जहां में दर बदर इक दिन
यही है सोचता गर तू रहेगा तू सदा प्यासा
कभी तो तज़करा होगा मेरी भी प्यास पर इक दिन
सदा सैय्याद कहता तेरा जीवन क़ैद में बुलबुल
अगर छोड़ा क़फ़स तो तेरे दूँगा पर कतर इक दिन
सम्प्रति: संगीत अध्यापक
उपलब्धियाँ: विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ
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