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रचयिता : शरद जोशी “शलभ”
उसको रूदाद सुनाने की ज़रूरत क्या है।
इतनी हमदर्दी कमाने की ज़रुरत क्या है।
जो किसी रस्म को जाने , न जो हमराह चले।
राब्ता उससे बढ़ाने की ज़रुरत क्या है।।
वो अगर दुनिया से डरता है तो घर में बैठे।
उसको घर जा के मनाने की ज़रुरत क्या है।।
मुश्किलें उलझने मजबूरियाँ क्या हैं उसकी।
इसका अन्दाज़ लगाने की ज़रुरत क्या है।।
लौट कर जाना है जब एक ही मंज़िल पे “शलभ”
फिर किसी और ठिकाने की ज़रुरत क्या है।।
परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
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