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गृहलक्ष्मी

गृहलक्ष्मी

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रचयिता : कुमुद दुबे

  बुआजी के घर के सामने आकर कार रुकी। क्षमा कार के शीशे में से देखकर ड्रायवर से बोली यही घर है भैया, गाडी यहीं रोक दो, हम यहीं उतर जाते हैं। आगे प्ले ग्रांउड है वहां गाडी पार्क कर देना। हम फ्री होकर तुम्हें फोन कर देंगे।
क्षमा और रघुनाथ बुआजी के घर में घुसते ही देखते हैं, बैठक में बडा-सा टीवी लगा है और बुआ-फूफाजी टीवी देख रहे हैं। दोनों ने बुआ-फूफाजी को प्रणाम किया। थोडी देर वार्तालाप के बाद क्षमा ने पूछ ही लिया बुआजी मधु भाभी दिखाई नहीं दे रहीं हैं? बुआजी बोलीं क्या बतायें बेटा मधु की मां की तबियत खराब चल रही है इसलिये राजेश सुबह ही उसे मंदसौर की बस में बैठाकर आया है। राशी बिटिया (पोती) की स्कूल की छुट्टियां लग गई हैं सो मधु चार-पाॅच रोज मां के साथ रह लेगी।
थोडी देर बाद बुआजी ने राशी को आवाज दी बेटा राशी बुआ के लिये पानी तो ले आ… राशी ऊपर से ही बोली आयी दादी…। क्षमा बोली बुआजी मैं ले आऊंगी राशी को डिस्टर्ब मत करो। बुआजी बोली बेटा वह पढाई नहीं कम्प्यूटर पर गेम खेल रही होगी, मधु ने सर चढा रखा है सयानी हो चली है, थोडा घर का काम भी तो आना चाहिये ना। लडकियों का भला चौंके चूल्हे के बगैर जीवन चला है? तू ही देख पढी-लिखी है काॅलेज में पढाती है फिर भी तेरा चूल्हा चौका छूटा है क्या? क्षमा मुस्कुरा दी, राशी पानी के दो ग्लास हाथ में ले आयी बुआ बोली तेरा रिजल्ट आया है बुआ का मुंह भी तो मीठा करा। राशी ने फ्रिज में से मिठाई का डिब्बा लाकर सेंटर टेबल पर रख दिया। क्षमा बोली बुआजी परेशान न हों, आज काॅलेज से जल्दी फ्री हो गयी आप लोगों से मिले बहुत समय हो गया था, सो आ गये।
बुआ बोली अच्छा किया बेटा, मधु होती तो कुछ खिलाये बगैर नहीं जाने देती ….। इतने में राजेश ऑफिस से आ गया। आते ही बोला माँ दीदी जीजाजी को कुछ खिलाया-पिलाया की नहीं? बुआ कुछ आगे कहती .., राजेश बाजार से ही नाश्ता ले आता हूं कहकर स्कूटर स्टार्ट कर चला गया। दस मिनट में नाश्ता लेकर आया और सीधा किचन में चला गया, क्षमा भी उसके पीछे हो ली। थोड़ी देर में क्षमा और राजेश चाय नाश्ते के साथ बैठक में आ गये। रघुनाथ बोले यार राजेश तुम नाहक परेशान हुये, इस पर राजेश बोला जीजाजी इस बहाने मुझे भी तो चाय पीने को मिल गई। बातों के बीच ही क्षमा ने पूछा-मधु भाभी की अनुपस्थिति में खाना कौन बनाता है, राजेश ने तो कभी बनाया नहीं ? बुआ बोलीं बेटा मेरे घुटनों की तकलीफ के कारण मैं किचन में खडे-खडे काम कर नहीं सकती, सो मधु खाने वाली बाई लगाकर गई है। बातों में वक्त का पता ही नहीं चला, शाम हो गयी थी बुआ कराहते हुये उठी और बोली बेटा तुम लोग बातें करो, मै जरा दिया-बाती कर दूं वर्ना रोज तो मधु ही करती है।
चाय के बाद रघुनाथ भी खडे हो गये, क्षमा से बोले-, बहुत देर हो गयी क्षमा, हमें अब चलना चाहिये, बच्चे घर में अकेले हैं।
बाहर निकलते हुये रघुनाथ बोले बिना नहीं रह सके, – बेटा राजेश
“गृहलक्ष्मी” की अहमियत उसकी अनुपस्थिति में ही मालूम होती है। मधु की कमी सभी को महसूस हो रही थी, सभी एक दूसरे को देख मुस्कुरा रहे थे।

लेखिका परिचय :-  कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

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