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घनश्याम नहीं आते

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भूपधर द्विवेदी अलबेला
रीवा (म.प्र.)

काल का कुचक्र कण-कण में है व्याप्त आज।
भीष्म, द्रोण पापियों की पीठ सहलाते हैं।।

सुंदरी, सुरा के मोहजाल में उलझकर।
मछली की आँख पार्थ भेद नहीं पाते हैं।।

शकुनी की चाल देख मारते ठहाके भीम।
सत्यवादी धर्मराज तालियाँ बजाते हैं।।

द्रोपदी जलील नित्य हो रहीं सभा में किंतु।
चीर को बढ़ाने घनश्याम नहीं आते हैं।।

लेखक परिचय :- नाम – भूपधर द्विवेदी
साहित्यिक उपनाम – अलबेला
पिता – श्री रमाकांत द्विवेदी
माता – श्रीमती श्यामकली द्विवेदी
जन्मतिथि – बसंत पंचमी १९९२
शिक्षा – स्नातक (गणित), डीसीए, डी. एलएड.
पेशा – शिक्षक
पता – जमुई कला तहसील – त्योंथर जिला रीवा (म.प्र.)


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