घनश्याम
रचयिता : शशांक शेखर
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करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योच्छावर तुमपर घनश्याम
जग की थाती में लिपटा मेरा जीवन मलीन घनश्याम ।
करो स्वीकार इसे के हो जाए चीत लीन तुझमें घनश्याम
किस मंदिर जाऊँ मैं पूजूँ कौन से विग्रह रूप घनश्याम ।
दुखियों के दुःख हरनेवाले को छोड़ सुख कहाँ मैं पाऊँ भगवान
करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योछावर तुम पर घनश्याम ।
तुम्हारे नाम पर धरती पर खड़े मंदिर कितने आलीशान
कहो कब भरते है हृदय की पीड़ा किसकी ये, घनश्याम
मैं पापी दुर्भागी किस मुँह से माँगूँ मोक्ष प्रभू
मैं तो माँगूँ बस सत्य के ही दर्शन प्रभू
ना मैं अर्जुन ना हस्तिनापुर का हठी दुर्योधन
ना रावण ना विभीषण पाप पुण्य में उलझा
मैं हूँ तुच्छ सा इंसान मुझको अंधकार से निकलो घनश्याम
करूँ कहाँ से पवित्र
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