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आपको पा लूँ …

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
(मुजफ्फरनगर)

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आपको पा लूँ ना ये हसरत सजायेगें कभी
वक्त है अब चल रहे हैं फिर ना आयेगें कभी

सर्द है यह लौ भी अब तो हसरतें- दीदार की
शम्मा तेरी आरज़ू की फिर जलायेगें कभी

जख्म बस हासिल हुए जिस दौर में अब तक मुझे
गुज़रे हुए उस दौर से तुमको मिलायेगें कभी

बुझ गई हर सम्त अब तो शम्मा ए महफिल यहां
बिखरे हुए जज्बात अपने फिर दिखायेगें कभी

खुश्क लब हैं चश्मे पुरनम क्यों है दिल नाशाद सा
पर्दा दर पर्दा हकीकत का हटायेगें कभी

रोते-रोते आज फिर लो हो गई हसरत जवां
बरबादियों के जश्न में खुद को लुटायेगें कभी

गाफिल रहे गुलशन में “शाफिर” बेखुदी अंदाज़ में
नाज़ुक गुलों से इस तरह भी जख्म खायेंगेंं कभी

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लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
ग्राम- सौंहजनी तगान
जिला- मुजफ्फरनगर
प्रदेश- उत्तरप्रदेश


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