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सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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दोनों का उद्देश्य समान है दोनों एक दूसरे के पूरक है। शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न क्रियाशीलनो के माध्यम से बच्चे-बच्चियों एवं युवकों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक तैयार करना है। जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विकास में सक्रिय सहयोग दे सके। शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति एवं उसके सफल कार्यवाही के लिए संसद द्वारा अनुमोदित प्रोग्राम ऑफ एक्शन में शारीरिक शिक्षा को शिक्षण को एक महत्वपूर्ण अंग बताया है। ऐसा संसार के विद्वानों का कहना है, गांधी जी ने कहा है कि शरीर जगत का एक संपूर्ण नमूना है। जो शरीर में नहीं है और जो जगत में नहीं है वह शरीर में नहीं है इसी से यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे का महा सूत्र प्रादुर्भाव हुआ है। इसीलिए यदि हम शरीर को पूर्णता पहचान कर उसे स्वस्थ रख सके तो जगत को भी पहचान कर उस पर अधिकार कर सकते हैं फिर अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हम शारीरिक शक्ति का होना जरूरी है। राष्ट्र की प्रगति और शक्ति जन-जन की शक्ति पर निर्भर करती है। इन भावनाओं को विकसित करने वाली शिक्षा पद्धति शारीरिक शिक्षा है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी शारीरिक शिक्षा को मानवीय अधिकार के रूप में लिया है और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में यूनेस्को ने शारीरिक शिक्षा एवं खेलकूद पर विशव के सभी राष्ट्रों के शिक्षा विभाग के प्रतिनिधियों एवं शिक्षाविदों का अपना विश्वा अधिवेशन २१ नवंबर १९७८ को पेरिस में बुलाया था। जिसमें यह निर्णय लिया गया कि शारीरिक शिक्षा एक राष्ट्रीय विषय के रूप में विद्यालयों और महाविद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में लागू किया जाए। दुनिया के देश आज इस क्षेत्र में हम से कितना आगे हैं यह लोग अनुभव करते हैं। ज्ञात है कि क्यूबा में इस शिक्षा के महत्व को जानकर वहां की सरकार ने भी नागरिक हेतु शारीरिक शिक्षा खेलकूद को अनिवार्य कर ६:०० बजे से सुबह ८:०० बजे सुबह तक के समय राष्ट्रीयकरण कर दिया है। भारत सरकार ने भी अपनी गति को तेज करने के लिए एशियाड और ओलंपिक पर अरबों राशि का भुगतान कर इस क्षेत्र में भी भारत को विशव को प्रथम स्थान पर लाने के लिए तत्पर है। जो कि शिक्षा का उद्देश्य है कि मानव के अंदर छिपी हुई प्रतिभाओं को उभारना और उसका विकास करना इस परिपेक्ष्य में शारीरिक शिक्षा में लोग अभिरुचि ले इसके लिए भारत के सभी राज्यों के विद्यालयों एवं माहविद्यालय पर बाल एवं युवा पीढ़ी के महर्षि पतंजलि के यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि की गूंज में उनके अष्टांग योग के सहित। वास्तव में मनुष्य की गरिमा को ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए सक्रिय योगदान देकर सभी राज्यों में युवा कल्याण क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक मंत्रालय का गठन किया गया है। तथा अंतरराष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा खेल कार्यक्रम योजना को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से २० सूत्री कार्यक्रम की कंडिका १३ में इसके महत्व को उभारने के लिए संकल्प लेकर विकास करने हेतु काफी बल दिया गया है। इसके साथ ही मानव संसाधन विकास विभाग मंत्री भारत सरकार ने आदेश दिया है कि इसके बाद तत्परता से नई शिक्षा नीति में भारत के सभी राज्यों से पाठ्यक्रम की अनिवार्य रूप से लागू किया जाए। उपरोक्त कथन से स्पष्ट हो जाता है कि इस शिक्षा का महत्व है। तथा इस दिशा में प्रशिक्षित युवकों पर क्या-क्या अत्याचार हो रहा है। उक्त कथन से यह साबित हो जाता है कि माननीय मुख्यमंत्री एवं पवित्र पदाधिकारियों के मनोबल एवं आदेश की अवहेलना कर कुछ पदाधिकारी इस शिक्षा की छवि धूमिल कर रहे हैं। इससे बिहार में खेल मंत्रालय प्रभावहीन हो रहा है। इस निबंध के माध्यम से माननीय उच्च पदाधिकारी एवं मानव संसाधन विभाग बिहार सरकार से नम्र निवेदन करता हूं कि शारीरिक प्रशिक्षित शिक्षकों को नियुक्ति तिथि से प्रशिक्षित का वेतनमान दिया जाए ताकि शारीरिक शिक्षा का भविष्य उज्जवल हो सके।

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लेखक परिचय :-  नाम – ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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