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गरमकोट

अर्चना मंडलोई
इंदौर म.प्र.

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माँ ने दिवंगत पिता के गरम कोट को सहलाकर भारी मन से अलमारी बंद करते हुए पूछा- बेटा सब तैयारी हो गई क्या? सुलभा इंतजार कर रही होगी।
हाँ माँ..उसने मामेरा मे देने के सामान पर एक नजर डालते हुए कहा..तभी फोन की घंटी बज उठी…सुलभा का फोन था….कब पहूँचोगे भैया…उधर से सुलभा व्यग्रता से कह रही थी!…. बस निकल ही रहे है….
चलो बेटा आज तुम्हें पिता और भाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी है….माँ की डबडबाई आँखे उससे छुपी न रह सकी।
नए कोट को सुटकेस में तह कर रखते हुए…वह उठा और अलमारी से निकाल पिता का कोट पहन लिया।
देखते ही माँ बोली..ये क्या? इतना पुराना कोट….शादी में …
हाँ माँ बहन को पापा की कमी महसूस न हो इसलिए मैने आज ये कोट पहन लिया है…
शहनाईयाँ बज उठी थी….माँ भावविभोर थी। और आरती की थाली लिए बहन पिता के रूप मे भाई को देखकर फूली नही समा रही थी।
और वो उस गरम कोट में अपने पूरे परिवार को समेट लेना चाहता था।

परिचय :अर्चना मंडलोई
जन्मतिथि : ३ मई १९६९
शिक्षा : एम.एएम. फील. पीएच. डी. पंजीयन
व्यवसाय : उच्च श्रेणी शिक्षक
साहित्यिक उपलब्धि : अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन, सम्पादन, लेखन, नाट्य लेखन व मंचन, अभिनय, अनेक साहित्यिक संस्थाओं की सदस्य, संचालन, विभिन्न विधाओं में लेखन, सामाजिक गतिविधियों में सहयोग, मालवी बोली के संरक्षण व संवर्धन हेतु मालवी नाट्य मंचन, लेखन तथा मालवी परम्परा व व्यंजनो का तीन वर्ष से मेला आयोजन।
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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