मंजिरी पुणताम्बेकर
बडौदा (गुजरात)
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मैं ऑफिस से अपना काम खतम कर निकली वैसे ही रामसिंग जो हमारा प्यून था दौड़ कर आया और बोला कि आपको साहब बुला रहें हैं। बॉस के केबिन में जाते ही बॉस ने मेरे हाथ में कोलकता का हवाई टिकट पकड़ाया और कहा कि “आपको कोलकता ऑफिस में दो दिन के असाइनमेंट पर जाना है। कम्प्यूटर्स सारे ख़राब है तो प्रेज़ेंटेशन के लिये आपको वहाँ जाकर कैसे भी कर मेन प्रोग्राम को ठीक करना है।”
मेरा तो जी जल गया क्यूंकि दो दिन के बाद उत्तरायण जो था। बहोत सारे प्रोग्राम बनाये थे कि तिल के लड्डू बनाउंगी, पतंग उड़ाएंगे और मौज करेंगे। और आज बॉस ने ये हवाई टिकट पकड़ाकर सारे प्रोगाम पर पानी फेर दिया। अब मैंने दूसरे दिन कोलकता पहुँच कर दिन भर काम किया और घड़ी में देखा तो शाम के सात बजे थे। फिर दिल बोल उठा कि काश मैं गुजरात में होती।
केबिन से बाहर आई तो देखा कि सारे लोग सक्रांति की छुट्टी ना मिलने से नाखुश थे। सारे मेरे पास आये और रिक्वेस्ट करने लगे कि मैं सर से छुट्टी की बात करूँ। सुनकर मैंने सोचा कि कल यदि ये सब छुट्टी लेंगे तो मैं अकेली कोलकता में क्या करूंगी? पर मन बोला कि मेरी अपनी छुट्टी तो बिगड़ी ही है पर मैं इन सबकी क्यूँ बिगाडूं? सोच कर मैंने बात की और सर राजी हो गये।
जब मैं ऑफिस से होटल के लिये निकलने लगी तो सीनियर ऑफिस एक्सिस्टेंट भट्टाचार्य आये और मेरा धन्यवाद कर बोले कि ऑफिस वालों ने कल एक प्रोग्राम जमाया है आप भी हम को ज्वाइन करें। मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि वो सरप्राइज है। पर आज रात बारह बजे निकलना होगा। हम आपको ऐसी जगह ले जायेंगे जहाँ आने के लिये लोग भारत भर से जाना चाहते है पर आ नहीं पाते और वो भी मकर संक्रांति पर पहुँच भी नहीं पाते। आपके नसीब में हैं इसलिए यहाँ आईं हैं।
मन में बहुत कुतूहल था। रात को एक बजकर दस मिनट पर बस मेरे होटल के सामने रुकी। और हम उसमें सवार हो कोलकता की सूनी सड़कों से, हावड़ा ब्रिज पार करते पैदल चलने वाले लोग और आगे जाकर रास्ते पर मैंने बोर्ड देखा जिसपर लिखा था गंगासागर जाने का रास्ता। ऐसे कई सारे बोर्ड लगे थे l तब मुझे मालूम हुआ कि हम गंगासागर जा रहे हैं। उन सबका धन्यवाद किया कि मकरसंक्रांति के दिन गंगासागर जाना और वो भी मैं पश्चिम वाली और इतने पूर्व में सोचकर बहोत आश्चर्य हो रहा था।
हमारी बस डायमंड हार्बर होते हुए कागद्वीप की तरफ बढ़ रही थी। कागद्वीप पर उतरकर हम टिकट के लिये पंगति में खड़े रहे। टिकट मिलने पर हम दस मिनट पैदल चल पानी के जहाज से तीस मिनट की यात्रा बहुत ही अविस्मरणीय थी। जल पक्षियों का झुंड देखते हमने हुबली कब पार कर कचउबेरी घाट पहुँचे। वहाँ से बत्तीस किलोमीटर दूरी पर गंगासागर द्वीप हैं। वहाँ से हमने गंगासागर द्वीप के लिये गाड़ी की। रास्ते के दोनों तरफ नारियल और खजूर के पेड़ और चावल के खेत थे। तीस चालीस मिनट बाद गाड़ी वाले ने हमें उतार कर कहा कि यहाँ से आगे गाड़ी नहीं जाएगी। आपको यहाँ से तीन किलोमीटर पैदल जाना होगा।
तीन किलोमीटर जाने के बाद समुद्री लहरों का आवाज और शांत माँ गंगा का बंगाल की खाड़ी में मिलन। वो दृश्य अवर्णनीय है। वो दृश्य तो सिर्फ आखों में बसाने जैसा और महसूस करने जैसा है बिल्कुल वैसा कि यदि आपसे कोई पूछे कि शकर कैसी होती है?
हमने वहाँ डुबकी लगाई। फिर हम कपिल मुनि के आश्रम में गये। तभी उदघोषणा हुईं कि दोपहर बार बजे वाली फेरी आखिरी है क्यूंकि समुद्र में ज्वार आने की संभावना है। हम जल्दी जल्दी फेरी में बैठे और शाम के चार बजे तक कोलकाता पहुँच गये।
होटल जाते जाते मैंने भगवान से एक प्रार्थना की माँ गंगा को साफ रखें। वो हमारी माँ हैं उनकी पवित्रता भंग ना होने दें।
परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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