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गंगा अब मैली नहीं

कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

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सुनाई देती है वही
सुरीले पंछी की चहचहाहट फिर से

है हवाओं में शीतल सी
वही गीतों की गुनगुनाहट फिर से

दिखाई देती है अब
साँझ की दुल्हन में शरमाहट फिर से

फूलों पर रंगीन तितलियों की
नजर आती है फड़फड़ाहट फिर से

गंगा भी अब मैली नहीं
उसकी निर्मलता में है सरसराहट फिर से

प्रदूषण की धुँध हुई विलय अब
इन वादियों में आई है खिलखिलाहट फिर से

धानी चुनर वह आसमान में
रुई के बादलों में गड़गड़ाहट फिर से

सफेद मोतियों की बूंदों में है
छम छम पायल की छमछ्माहट फिर से

प्रकृति की साँसो पर सजती है
सदियों पुरानी वही मुस्कुराहट फिर से

रजनी की गोद में सजी पृथ्वी की
वही स्वर्ण कमल सी टिमटिमाहट फिर से

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परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित 

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