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गांधी हैं एक बहाना

मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
मुज्जफरपुर

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उत्सव देता हमें न रोटी,
देता गेहूँ दाना।
प्रचार स्वयं का करते हो,
गांधी हैं एक बहाना।

“भूखे भजन न होहिं गोपाला”,
कह गए हैं पहले पुरखे।
कैसे उत्सव देखें (?), जब
हैं पेट हमारे भूखे।

पहले गेहूँ , तब गुलाब,
यह बात है एकदम सच्ची।
पहले दो तुम रोटी हमको,
फिर कहना बातें अच्छी।

गांधी-पथ है कठिन बहुत,
बस स्वांग ही रच सकते हो।
समझ रहे हैं तुम्हें खूब,
हमसे ना बच सकते हो।

छोड़ो बाकी बातें, बस तुम
कृषकों को ही ले लो।
उनकी उपजायी फसलों का
उचित मूल्य तो दे दो।

‘भितिहरवा’ में जाकर देखो
कृषकों की बदहाली।
जीर्ण-शीर्ण वस्त्रों में करते
फसलों की रखवाली।

शीत घाम दोनों सहते हैं
बिना निकाले आह।
देख रहे हैं, करते कितना
तुम उनकी परवाह।

बड़ी-बड़ी बातें करते हो
मंचों पर बस जाकर।
जीयेंगे क्या कृषक तुम्हारी
बातों को ही खाकर?

गांधी ने जो कहा, उसे था
जीवन में अपनाया।
तूने केवल नाटक करके
लोगों को बहलाया।

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परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र ‘दर्द’
पिता –
रामनन्दन मिश्र
जन्म –
०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार)
निवास –
मुज्जफरपुर
शिक्षा –
एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी.
उपलब्धियां –
कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
अप्रकाशित रचनाएं –
यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना)


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