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जिंदगी के खेल

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रचयिता : मित्रा शर्मा

 

जन्म से मृत्यु तक
 कितने खेल होते है
आते  वक्त रोता है इंसान
जाते वक्त रुलाता है।
 चिता के आग एक बार जलता
 चिंता का चिता बार बार
  आत्मा  उड़ जाता है जब
शरीर हो जाता है जड़।
 मैं और मेरा पन छोड़ दे
  राग अनुराग छोड़
 धन की मोह छोड़ मानव
 कल्याण की दिशा मोड़ ।
  भाई भाई की रिश्ता रख
बदले भाव न रख
  खुद बदले तो  जग बदले
यह सद्भवना रख
 क्या लेकर आए थे
क्या लेकर जाएंगे
 अच्छे कर्म से मानव
जीवन सार्थक कर पाएंगे

परिचय : मित्रा शर्मा – महू (मूल निवासी नेपाल)


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