Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

ठंढी की कहानी

विरेन्द्र कुमार यादव
गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)

********************

बेजुबान कढ़ाके ठंढी की कहानी,
कई हजारों साल की है ये पुरानी।

ठंढी के दिन की शुरुआत जब होये,
सभी ढूढे अपने गर्म कपड़े जो खोये।

किसान गेहूँ का बीज,खाद सब जोहे,
कड़ाके की ठंढ़ में खेत में गेहूँ बोये।

नंगे पाँव वह खेत में गेहूँ सिचने जाये,
उसे ठंढ़ की चिंता बिल्कुल न सताये।

ठंढ जनवरी में इतनी ज्याद बढ़ जाये,
सूरज ठंढ में बर्फ का गोला बन जाये।

पानी सब लोग पिये गरमाय-गरमाय,
ठंढ में खीर-पूड़ी,पकवान सब खाय।

गरम समोसा पैक करके घर ले आय,
कई गरम जिलेबी दुकान पर ले खाय।

कोई स्वैटर व जाकिट पहिन ठिथुराय,
कोई उलेन का पैंट-शर्त रहा बनवाय।

फिर भी सबको ठंढ रहा बहुत सताय,
गर्मकर रहा हाथ कोई लकड़ी जलाय।

फिर भी ठंढ नहीं रही किसी की जाय,
पीये काफी कोई पीये चाय पर चाय।

फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय,
फिर भी ठंढ रहा सबको बहुत सताय।

परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव
निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *