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व्योम के उस छोर से

कल्याणी गुप्ता “कृति”
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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व्योम के उस छोर से
क्षितिज के अंतिम बिंदु तक,
जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है,
मैंने तुम्हें खोजा,
बहुत खोजा,
पर तुम नहीं मिले।
घंटियों के शोर में,
कंदराओं में,
खोह में, नहीं
भीड़ में, जलसों में,
ढोल बाजों में,
नगाड़ों में
तुम्हारा कोई
अता-पता नहीं था।
मैं गौर से देखती रही
श्रंगारों में, खुशबुओं में,
सुसज्जित प्रासादों में,
तुम्हारी एक
झलक भी नहीं थी।
रोज़ ढूंढती रही
मैं तुम्हें नगर-नगर।
भटकते हुए यूँही एक दिन
पैर पड़ा उस धरा पर
जहाँ कुछ दिन पहले
मैंने बोया था एक बीज
वहाँ अब एक
पौधा लहलहा रहा था।
मैं मुस्कुरा उठी
वहीं तो तुम थे।

परिचय : कल्याणी गुप्ता “कृति”
शिक्षा : एमएससी., एम ए., डी एड.
निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मेरी यह रचना, पूर्ण रूप से मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित है।


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