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वर्ण से व्यतिक्रम तक

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’
जौनपुर (उ.प्र.)

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एक समय में वर्ण व्यवस्था थी भारत की शान
दिग दिगांतर में भारत की थी विशिष्ट पहचान

सामाजिक संरचना का था कर्म ही बस आधार
जाति पाति का भेद नही था सुखी बहुत संसार

कर्म ही कर्ता कर्म ही धर्ता कर्म ही जीवन सार
कर्म ही जीवन कर्म सृजन है यही था मूलाधार

कालांतर में जाने कैसा किसी ने फेंका पाशा
वर्ण के बदले जाति आ गई बदल गई परिभाषा

जाति प्रधान देश हो गया बदल गई फिर सूरत
अपनी धपली अपना राग़ें सबकी अपनी मूरत

घुसे देश में आक्रांता तो शुरू हुआ नव खेला
संस्कृति पर आघात हुआ दंश मज़हबी झेला

करना था बदलाव तंत्र में लेकिन ऐसा नही हुआ
देश हो गया ग़ौण सोच में खेल मज़हबी शुरू हुआ

मज़हब के कुछ हैवानों ने माँ का सीना चीर दिया
कत्लेआम हुआ लाखों का हर साहिल को पीर दिया

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परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’
निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश
सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य संग्रह सम्पादित, अध्यक्ष साहित्यिक संस्था जौनपुर उत्तर प्रदेश


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