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रोटी से पटरी तक

आदर्श उपाध्याय
अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश

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रोटी के लिए ही जन्म पाया
रोटी को ही जीवन भर कमाय।
वो घड़ी आ गई थी जब ,
रोटी को छोड़ मौत ने बुलाया।
रोटी से रेल की पटरी तक
क्या
सारा प्रबंधन ही जर्जर है ?
आ गई थी यह कैसी घड़ी
मौत का ये कैसा मंजर है ?
जिसने रोटी के लिए तड़प कर
इस पटरी को
देश , जनता और सरकारों के लिए बनाया है।
इसी पटरी ने उन्हें आज
मौत की गोद में सुलाया है ।
धिक्कार है ऐसी सत्ता पर
जो
मजदूरों को उनके घर न पहुँचा सकी,
उनकी मौत के बाद ही केवल
तमाम सबूतों और गवाहों में जुटी।
ए खुदा ,
तेरी यह कैसी खुदाई है
किस फैसले की सजा
तुमने उन्हें सुनाई है ?
फटे किसी के सिर और
कटे किसी के हाथ
परिवार और जिंदगी से
छोटा सबका साथ।
क्या खता थी उनकी जिसने
शैशव भी नहीं देखा था ?
माँ के दूध और आँचल को
ठीक से नहीं निरेखा था।
पत्नी के हाथ में हाथ धरे
तुम मृत्यु की गोद में चले गए
क्यों न इससे पहले ही
तुम शहर छोड़कर चले गए।
दिल की धड़कन रुक गई
जब खबर सुना मैंने यह
कि प्रबंधन की लापरवाही से
कितनों की जानें चली गईं।
कुछ दिन खबर चलेगी यह
सबके मुँह से सबके कलम से
फिर,
भूल जाएँगे वो
कि
मजदूरों की जिंदगी गई
मेरी ही गलती मेरी कलम से
चुप हो जाएँगे सत्ताधारी
चुप हो जाएगी मीडिया।
पर सोचो,
क्या बीतेगी उन पर
जिनके सिन्दूर जिनकी राखी
मृत्यु ने आकर ले लिया।
लाखों किलोमीटर पटरियाँ बिछाने वाला
वह देशभक्त अब कहां गया
आर्यावर्त विश्व गुरु था
लेकिन अब यह कहाँ गया ?

परिचय :- आदर्श उपाध्याय
निवासी : भवानीपुर उमरी, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश


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