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मित्र

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)

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मित्र शब्द श्रवण ।
कर्ण करते ही मित्र का ।
चित्र मुख सम्मुख उपस्थित ।
हो उर अति उमंग भरता ।
अंतर भावविभोर हो शीतल ।
निर्झर हिलोरे ले मंद-मंद मुस्कान
व्याप्ति,मित्र एक सुखद अनुभूति
विश्वास मधुरता युक्त ।

मित्र प्रति स्थिति,परिस्थिति संग।
संबल देता अटूट दृढ स्तंभ सम।
ज्यो कर्ण अरू दुर्योधन मित्रता ।
कृष्ण-सुदामा सम सखा ।
मित्रता विशाल वृक्ष सम छाया ।
ज्यो राम-सुग्रीव मित्रता ।

यत्र-तत्र-सर्वत्र मित्र कथा ।
पौराणिक कथा प्रमाण ।
सुख-दुख में संग-साथ निभाना ।
प्राप्त हुए,मित्र संसार की अमूल्य
निधि है,अनमोल धरोहर ।
मित्रता की महिमा ।
निराली अरू बहु सरस ।
मित्रता पावन सुगंध चंदन सम ।

परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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