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छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.

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रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी

तीरगी घर मे भले
चिराग क़ब्रो पे जले
भूखमरी हो जीते जी
मरे बाद दावत चले
रिश्वत देकर करे काम
धन्धे  ऐसे  खूब फले,
खाना बदोश जिंदगी,
कोई मंज़िल न मरहले,
सब  है इंसा के पास,
ईमान की कमी खले,
भीड़ में   दुनिया की,
अब  हम  तन्हा  चले,
घूमे फिरे सब जगह,
घर  लौटे  शाम   ढले ,
करते रहो रोशन जहाँ को
अंधेरा तो खुद  के तले,
आस्तीन हो गई गायब,
सांप अब  कहाँ  पले,
चिड़िया क्या खेत चुगे,
बाढ़ में ही बीज  गले,
दूध की क्या बात करे,
अब तो छांछ के है जले,
ऐसा धरम हम क्यो करे,
हवन करते हाथ जले।
मन के  मैले  है जो वो,
मुझसे   कैसे लगे गले।
मौत  हक़  है  “इक़बाल “
आये  तो  फिर ना  टले  ।।

परिचय : नाम – डॉ. इक़बाल मोदी
निवासी :- देवास (इंदौर)
शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन
विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक
विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण
दायित्व :- संरक्षक – पत्र लेखन संघ
सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई
प्रतिनिधित्व :- विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल


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