अंजना झा
फरीदाबाद हरियाणा
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स्त्रीत्व की स्वाधीनता को पहचानने लगी है वो
स्वयं में स्व को ढूंढकर खुद में जीने लगी है वो
अति गहरे जख्म दिये सतत इन अपनों ने उसे
इन बनावटी रिश्तों में उलझ उबने लगी है वो।
चाहती है अंतर्सात कर ले गहरे जख्मों को वो
झेल जाए जीवन के कठोर झंझावातों को वो
सहेजे रिश्तों के जाल जिसने घायल किया उसे
डर है रिश्ते सहेजते चटक कर न टूट जाए वो
मानस में पडे़ अतीत के नींव को कैसे उखाडे़ वो
कटुता से व्यथित मन को किस तरह संभालें वो
उपदेश वही दे रहे हैं जिन्होंने घायल किया उसे
सुन उनके आदर्शवाद व्यग्रता से खिन्न हुई है वो।
छल प्रपंच की कटुता से ओतप्रोत हो चुकी है वो
छद्दम जीवन अब नहीं व्यतीत कर सकती है वो
दुख के क्षणों ने अंतर्आत्मा में संबल दिया है उसे
चट्टान बन स्व को समेटने में माहिर हो गई है वो।
स्त्रीत्व की स्वाधीनता को सही पहचान देगी वो
आत्मविश्वास के आत्मबल से सराबोर हुई वो
सहजता से बस स्वजीवन को संवारना है उसे
स्वयं में स्व को ढूंढ कर जीना सीख ही लेगी वो।
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परिचय :- नाम : अंजना झा
माता : श्रीमती फूल झा
पिता : डाक्टर बद्री नारायण झा
जन्म तिथि : ६ अगस्त १९६९
जन्म स्थान : पटना
अंजना झा मूलतः बिहार की निवासी हैं। आपने मनोविज्ञान में एम.ए. किया है। पूर्व में आर्मी पब्लिक स्कूल में शिक्षिका रही हैं। आप कुछ समय आनलाइन पत्रिका साहित्य लाइव में संपादिका पद पर भी रह चुकी हैं। आपकी रुचि लघुकथा और काव्य लेखन में है। आपकी रचनाएँ हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं हैं।
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