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निराला के प्रति चार मुक्तक

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच
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एक नई पहचान बनाई,
नई कविता दे कर के।
नश्वर जग में अमर हो गए,
सदा निराला यूं मरके।।
कविता उनकी सीधे-सीधे,
दर्दों से संवाद रही।
उनकी आंखों में आंसू थे,
जिनके दिल थे पत्थर के।।

इंसानों की खिदमत में वे,
रहे सर्वदा कब हारे।
झुके गर्विले पर्वत उनके,
आगे देखें हैं सारे।।
वही किया जो सोचा मन में,
कथनी करनी एक रही।
नहीं निराला बने भूलकर,
मानवता के हत्यारे।।

दान नहीं स्वीकार किया है,
लड़कर के अधिकार लिया।
वही किया है इस दुनिया में,
जब-जब जो-जो धार लिया।।
सत्य धर्म के रहे निकट वे,
महाप्राण मानवतावादी।
इसीलिए जनता का दिल से,
प्यार “अनंत” अपार लिया।।

सूर्यकांत निराला के जो,
व्यवहारों का दर्शन भी।
सफल हुए करने में लोगों,
लाए है परिवर्तन भी।।
भरते थे वे खाली झोली,
“अनंत,” करते हमदर्दी।
उनकी देखा देखी करलो,
सदा करें मन नर्तन भी।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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