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चन्द्रमा पर चार मुक्तक

रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
इंदौर म.प्र.

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पलायन सांझ को कर मुख छिपाया जब दिवाकर ने!
निशा को कर दिया चिन्तित अंधेरे के बड़े डर ने।
सभी जड़ और चेतन प्रतीक्षारत थे उजाले के,
प्रकाशित कर दिया धरती को तब आकर निशाकर ने।

ढला दिन सांझ सरकी तो कहीं से यामिनी आई।
कहा कवि उर ने “भू पर सांवरी सी कामिनी आई।”
धरा चिंतित थी उसके सांवरे तन को संवारे कौन,
अचानक चन्द्रमा से चांदनी सुखदायिनी आई।

ख़ूब सोलह सिंगार करती है।
चौथ व्रत निराहार करती है।
उसका चेहरा है चाँद-सा फिर भी,
चाँद का इन्तज़ार करती है।

चाँद-सूरज की चमकती रोशनी सबके लिए है!
धूप सबके वास्ते है, चाँदनी सबके लिए है।
चन्द्रमा का साथ देते हैं सितारे अनगिनत पर,
भानु नभ में नित्य एकल यात्री सबके लिए है!

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परिचय –

साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’
जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद
कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य
सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा
लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, आलेख आदि।
प्रकाशन ~ अब तक लगभग दो दर्जन साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। पांच काव्य संकलनों का संपादन किया है।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार ~ विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेकानेक सम्मान व अलंकरण प्राप्त हुए हैं।
विशेष उपलब्धि ~ हिन्दी और अंग्रेजी का राज्य प्रशिक्षक तथा जूनियर रेडक्रास का राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे। सन्रा १९९२ में राज्यपाल से अवार्ड मिला।
लेखनी का उद्देश्य ~ राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता तथा व्यक्तिगत सर्वांगीण विकास।
पसंदीदा हिन्दी लेखक ~ शिवमंगलसिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, नीरज
विशेषज्ञता ~ मैं सदैव स्वयं को विद्यार्थी मानता आया हूँ।
देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार ~ भारत से मैं असीम प्रेम करता हूँ। धरती पर ऐसा अद्भुत महान देश अन्यत्र नहीं। मुझे हिन्दी बोलने,पढ़ने और इस भाषा में कुछ भी लिखने में बहुत गर्व का अनुभव होता है।
मौलिकता की जिम्मेदारी ~ मैं मौलिकता को लेखन का अनिवार्य अंग मानता हूँ।


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