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सृष्टि के रुप

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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कभी रँगी मैं, श्वेत धवल से,
कभी सजी, ओढ़ धानी रँग,
पहन हरा, झूमी मैं उपवन,
इतराई रही, ले फागुनी रँग…

कभी महकू, अमराई से मैं,
कभी बिखरु, बन गुलमोहर,
कानन-कानन,चमक रही मैं,
अंशु झलकी, ज्यो गजगौहर…

तृण, तरु, लता, अनिल, हूं मैं,
निर्झर की, कल कल निर्मल मैं,
बनी कही, मैं किरीट धरा का,
हूं, अवनि से अंबर तक मैं…

मैं ही जननी, हूं पालक भी मैं,
हूं सृष्टि और आदि अंनत मैं,
नीलकंठ बन, सब सहेज रही मैं,
वक्त थमा हैं, जो महक रही मैं…

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परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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