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भूलाकर गाँव

वीणा वैष्णव
कांकरोली

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भूलाकर गाँव को तूने, शहर में घर बनाया है।
खो गया रंगीनियों में, अपनों को बिसराया है।।

गाँव के लोग भोले, दिल में प्यार बसता है।
उनकी हर बात में सिर्फ, अपनत्व बरसता है।।

शहर की जिंदगी, चारदीवारी में रहता है।
अपनों बीच सदा, वह अकेला होता है ।।

गांव के लोग सुख-दुख में, पास होते हैं ।
गांव एक आवाज में, चौपाल पर होता है।।

पैसा तूने शहर में, रह बहुत कमाया है।
अपनों बीच, तू सदा ही रहा पराया है।।

हर बात गाँव के लोग, अपनों को बताते हैं।
आए जब विपदा तो, मिल बैठ निपटाते हैं।।

अकेला तू रोता, नहीं कोई ढ़ाढस बंधाता है।
शहर लोग सिर्फ, दिखावटी प्यार जताते हैं।।

लौट आ अब भी, तेरी हम राह तकते हैं।
भूला सारे गिले-शिकवे, तुझे गले लगाते हैं।।

तेरे आने से पुराने दिन, फिर लौट आते हैं।
गाँव गलियों में, फिर हम धूम मचाते हैं।।

एक बार बचपन को, हम फिर जीते हैं।
गाँव जीवन जीवन है, सबको दिखाते हैं।।

बच्चों को जिंदगी, जीने का हुनर बताते हैं।
खुशियां पानी है कैसे, यही राज समझाते है।।

गाँव की संस्कृति से, जिंदगी जन्नत बनाते हैं।
पुरखों की सौगात को, सहेजना सिखाते हैं।।

जिंदगी का सही आनंद, देख गाँव में पाते हैं।
खेतों में तुझे पक्षियों का, कलरव सुनाते हैं ।।

जिंदगी बहुत छोटी क्यों, गैर बर्बाद करते हैं।
अपनों के बीच, सुकून कुछ पल बिताते है।।

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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।


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