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भूली बिसरी यादे

योगेश पंथी
भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
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बचपन के खेल भूल गये
बच्चो कि रेल भूल गये।
आज बने हैं खुद कोलू
कोलू का बेल भूल गये॥

ह्र्दय घात अब क्यौ न हो
कोलू का तेल भूल गये।
ह्रदय स्पंदन बढ़ता घटता
नमक पहाड़ी बभूल गये॥

बच्चे होते उदर काट कर
घर की चकिया भूल गये।
भूले मोगरी कपड़े धोना
सिल्ला लुड़ीया भूल गये॥

भरी जवानी सर चाँदी सा
आँवला अरीठा भूल गये।
भूल गये वो ब्रह्ममुहूर्त
शाम सुहानी भूल गये॥

मोबाईल में ऐसे खोये
वो खेल पुराने भूल गये।
भूल गये वो गिल्ली डंडा
वो दौड़ कबड्डी भूल गये॥

लिप्त हैं कई व्याधियों में
अपनी दिनचर्या भूल गये।
इस विदेश की होड़ में हम
खुलकर जीना भूल गये॥

अपने निर्मित उत्पादों को
उनकें पेकिट में भर डाला।
पोषक और कुपोश्क वस्तु
दो पेकिट मे कर डाला॥

अपना सामा अपने घर में
वो चार चौगने बेच रहे।
तैयार किये क्रांति विरोने
हथियारो को धर डाला॥

आज विदेशी हाथोंं में
सारा व्येपार् हे कर डाला।
यह् स्वलम्बन् गर अपना
पराब्लम्न् में बदल गया॥

फिर गुलाम बन जायेगा जो
तोड़ जनजिरे निकल गया।
अब अधीन होने में हमको
रही उतनिक भी देर नहीं॥

हमको ही आगे आना होगा
अब कोई अंधेर नही।
अभी जागृति लानी होगी
रखना कोई धेर्य नही॥

इससे पहले बदल जाये
ये काँटों और बबुलो में।
अब सूरज हैं ढलने वाला
बर्बादी क़ि भूलो में॥

परिचय :- योगेश पंथी
निवासी : टीलाजमालपुरा भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से लेखन यात्रा प्रारंभ ….
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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