जितेंद्र शिवहरे
महू, इंदौर
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“क्या बात है मधु! इतनी मायुस क्यों है?” रानी ने पुछा। स्कूल का लंच टाइम था।
“हां मैं भी कई दिनों से देख रही हूं मधु गुमसुम है?” रंजू ने कहा।
तीनों सहेलियां एक ही स्कूल में अध्यापिका थी। इन तीनों की खूब पटती। जहां भी जाना होता तीनों साथ जाती। लंच भी एक साथ करते। शाॅपिंग की वस्तु सर्वप्रथम एक-दूसरे को दिखाया करती।
“मैं अभिषेक को लेकर चिंतित हूं।” मधु ने कहा।
“तो क्या उसने शादी से इंकार कर दिया है?” रंजू ने पुछा।
“नहीं। मगर हां भी नहीं किया।” मधु ने कहा।
“क्या मतलब।” रंजु ने पुछा।
“मतलब ये की वो शादी कर रहा है और मुझसे भी संपर्क बनाये रखना चाहता है।” मधु ने कहा।
“क्या?” रंजू चौकी।
“हां! लेकिन मैंने उसे एक थप्पड़ रसीद कर ये रिश्ता यहीं खत्म कर दिया है।” मधु ने कहा।
“मैंने पहले ही कहा था, इस अभिषेक का कोई भरोसा नहीं है। वो भी बाकि लड़को की तरह है।” रानी ने कहा।
“तुम सही थी रानी। मुझे पहले ही संभल जाना था।” मधु बोली।
“अब भी देर नहीं हुई है मधु। तूने उसे अपनी जिन्दगी से तो निकाल दिया है, अपने दिल से भी निकालकर बाहर फेंक दे। ये लड़के पहले बड़ी-बड़ी बातें करते है और फिर अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद सबकुछ भूल जाते है।” रानी की आवाज में उसके निजी जीवन का दर्द छलक आया। रानी और मिथुन के विवाह को पांच वर्ष हो चूके थे। मगर रानी अब भी अपने पति के व्यवहार से संतुष्ट नहीं थी। उसे आज भी लगता था कि उसने मिथुन से शादी कर अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है।
“रानी! हम दोनों जानते है कि तुझे मिथुन से बहुत शिकायतें है। लेकिन वह सबसे अलग है।” मधु बोली।
“हूंअsss!” रानी ने हूटिंग की।
“हां रानी! मैं मधु की बात से सहमत हूं। क्या हुआ जो वह बाॅडी-बिल्डर नहीं है। उसकी हाइट कम है। लेकिन तुझे कितना खुश रखता है।” रंजू ने कहा।
रानी समझने को तैयार नहीं थी।
“देख रानी! मेरी तरफ देख! आज मुझे कटी पतंग की तरह हर कोई लुटना चाहता है। क्या मैं तेरी तरह सुरक्षित हूं। एक अभिषेक से कुछ आस थी मगर वह भी मुझे उपयोग की वस्तु ही समझता है।” मधु की आंखें भर आयी। रानी ने सहानुभूतिपूर्वक उसके कंधे पर हाथ रखा।
“रानी! तेरा पति हजारों में नहीं लाखों में एक है। वह हर हफ्तें तुझे घुमाने ले जाता है। हर महिने शाॅपिंग करवाता है। तुझे वो सब देता है जो तुझे पसंद है।” रंजू ने कहा।
“और वो यह सब इसलिए करता है क्योंकि वह तुझे नाराज होता नहीं देख सकता। जरा सोच! इतना सब करने के बाद भी अगर उसे यह पता चले कि तु खुश नहीं है क्योंकी तुझे हमेशा से एक एथलीट से शादी करनी थी, तब उसे कितना बुरा लगेगा।” मधु बोली।
रानी विचार मुद्रा में थी।
“मैं इसीलिए शादी के नाम से दूर भागती हूं।” रंजू ने हल्क-फुल्का मज़ाक किया।
“ये मज़ाक की बात नहीं है रंजू। अपनी उम्र देख। छत्तीस की हो गयी है तू। अब नहीं तो कब करेगी शादी?” मधु ने कहा।
“ओह प्लीज! तुम फिर से शुरू मत हो जाना!” रंजु चिढ़ते हुये बोली।
“अरे वाह! अभी तो खुब लेक्चर दे रही थी। अगर हम तेरी बात मान रहे है तो तुझे भी हमारी बात माननी पड़ेगी।” रानी ने कहा।
“मुझे शादी से ऐतराज नहीं है रानी! बल्कि शादी के बाद होने वाले हादसों से डरी हुई हूं। तुम दोनों का उदाहरण मेरे सामने है। क्या तुम दोनों शादी करके खुश हो?” रंजू बोली।
“रंजू! यह जरूरी नहीं की जो हमारे साथ हुआ वो तुम्हारे साथ भी हो! हो सकता है तुम्हारी शादीशुदा लाइफ हम सबसे अच्छी हो?” रानी ने कहा।
“और फिर होनी को कौन टाल सकता है रंजू। जो निश्चित है वो तो होकर ही रहेगा। अनहोनी के डर से हम जीना तो नहीं छोड़ सकते न!” मधु ने तर्क दिये।
रंजू मौन थी।
“देख रंजू। विमल तेरे लिए एक दम परफेक्ट है। हम सबकी राय है कि तुझे हां कर देना चाहिए।” रानी ने कहा।
दोनों सहेलियां जानती थी कि रंजू विमल के प्रित सकारात्मक थी। बस उसे विमल नाम पर आपत्ति थी। क्योंकि ये एक खाकर थूंकने वाले गुटखा प्रोडक्ट का नाम था।
“रंजू! दुनियां में इच्छा मृत्यु किसी को नहीं मिलती। कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत समझौता तो करना ही पड़ता है।” मधु ने कहा। रानी और मधु के तर्कों से रंजू प्रभावित हुये बिना न रह सकी। इस वार्तालाप से तीनों सहेलियों का मन हल्का हो गया। उन्होंने संकल्प लिया कि भुतकाल में उनसे जो भी भूल हुई है उसे भविष्य में कदापि नहीं दोहरायेंगी। वे तीनों अपने-अपने वर्तमान को सुखमय बनाने का हर संभव प्रयास करेंगी।
परिचय :- जितेंद्र शिवहरे आपकी आयु – ३४ वर्ष है, इन्दिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड मुसाखेड़ी इंदौर निवासी जितेंद्र जी शा. प्रा. वि. सुरतिपुरा चोरल महू में सहायक अध्यापक के पद पर पदस्थ होने के साथ साथ मंचीय कवि भी हैं, आपने कई प्रतिष्ठित मंचों पर कविता पाठ किया है।
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