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क्षमा- एक दिव्य गुण

सुनीता चौधरी ‘सरस’
अबोहर फाजिल्का (पंजाब)
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एक सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ कई दिव्य गुणों से अभिभूत है। यह दिव्यता परमात्मा ने उसे हर क्षेत्र में प्रदान की है। चाहे हम भौतिक गुणों की बात करें या आध्यात्मिक गुणों की। इन गुणों से सरोबार मनुष्य है दिन प्रतिदिन विकास की ऊंचाइयों को छूता हुआ अपने किस्मत का सितारा आसमान में चमक आ रहा है। इन सितारों को चमकाते-चमकाते वह क्या सही और क्या गलत कर रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है। माना कि जब भी मानव गलती करता है तो हर बार परमात्मा उसे किसी न किसी रूप में क्षमा कर देता है। लेकिन बुलंदियों को छूता हुआ मनुष्य अन्य लोगों को रुलाता हुआ इस प्रकार आगे बढ़ता है कि उसे अपनी गलती का अहसास तक नहीं होता लेकिन अगर हम पुराने समय की बात करें तो समाज में जियो और जीने दो की भावना पूरे समाज को सरोबार वह तरोताजा रखती थी। लेकिन आज का मनुष्य क्षमा जैसे दिव्य गुण ही भूल गया है यह ऐसे गुण है जो प्रत्येक व्यक्ति में होने चाहिए अगर हम धर्म और वेदों की बात करें तो सभी गुणों में क्षमा सर्वोच्च गुण माना गया है क्योंकि क्षमा निर्धनों का बल है बलवानों का आभूषण है। विश्व में कोई ऐसा कार्य नहीं जो क्षमा से सिद्ध ने किया जा सके। इसलिए हमें माफ करना आना चाहिए क्योंकि जब हम किसी को क्षमा करते हैं तो हम उसकी गलती को बिना किसी प्रतिकार के मान लेते हैं। जिस भी व्यक्ति को क्षमा करते हैं वह व्यक्ति अपनी गलती के लिए पश्चाताप करता है प्रायश्चित करता है। प्रायश्चित की अग्नि में जलता हुआ इंसान सोने की तरह निखर जाता है। वह भी क्षमा रुपी दिव्य गुणों को प्राप्त कर लेता है क्योंकि जब भी हम किसी को क्षमा करते हैं तब हम परमात्मा की गोद में बैठे हुए हैं ऐसा महसूस करते हैं। क्षमा प्रार्थी मनुष्य जिसको सांसो से भी ज्यादा क्षमा की जरूरत होती है क्षमा प्राप्त होने के बाद प्रायश्चित और पश्चाताप के पंख लगा कर एक नई उड़ान भरता है। अपराध बोध से मुक्ति पाकर एक नई जिंदगी की शुरुआत करता है। उसे ऐसा महसूस होता है कि उसे अपनी गलतियों या दुष्कर्म से छुटकारा मिल चुका है वह अपने जीवन में अन्य व्यक्तियों को क्षमा करते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उसका दिमाग पहले से कहीं ज्यादा क्रियाशील हो जाता है। अगर हम किसी एक व्यक्ति को क्रियाशील बना पाए तो यह एक अपने आप में बहुत बड़ा कार्य होगा। तो आइए हम सब क्षमा करना शुरू करते हैं। सीखते हैं, सिखाते हैं। इसकी शुरुआत हम स्वयं से ही करेंगे क्योंकि कई बार हमसे कोई गलती हो जाती है तो हम खुद को क्षमा नहीं कर पाते कई बार परिणाम यह होता है कि व्यक्ति खुद को क्षमा न कर पाने के कारण आत्मग्लानि से भर जाता है और आत्महत्या कर लेता है। हम सब जानते हैं कि आत्महत्या एक सामाजिक अपराध है समाज में ऐसे अपराधों से मुक्ति पाने के लिए हमें क्षमा करना सीखना होगा इसकी शुरूआत स्वयं से करके सभी व्यक्तियों तक करनी होगी जिन्होंने हमें जाने अनजाने में चोट पहुंचाई है। उन सब को क्षमा करके जो आत्मिक शांति और आनंद मिलेगा वह अत्यंत दुर्लभ होगा। हमें जीने में भी आनंद और सुख की प्राप्ति होगी।
जैसा कि हमने पहले भी बात की कि जियो और जीने दो की भावना क्षमा के गुण से ही विकसित होगी। कई बार हम किसी को क्षमा करते हैं तो अन्य कई व्यक्तियों की छोटी बड़ी शिकायतें होती है हम उन शिकायतों को नजरअंदाज भी नहीं कर सकते फिर भी उन शिकायतों से ऊपर उठकर क्षमा करना चाहिए क्योंकि हम भी हमेशा परमात्मा से क्षमा मांगते हैं। जब हम किसी को क्षमा करके उसे अनुग्रहित करते हैं, तो परमात्मा लाखों-करोड़ों बार क्षमा करता है। अगर हम चाहते हैं कि परमात्मा हमें क्षमा करके अपनी शरण में ले, जिससे ऐसा चमत्कार हो कि हमारी दुनिया ही बदल जाए और हमें आनंद और सुख की प्राप्ति हो। यही सुख और आनंद हम अपने लिए ही ने सहेजें वरन दूसरों के सुख और आनंद का कारण हम स्वयं बने बनने की कोशिश करें। यह सब कार्य हम अच्छे दिल के होते हुए ही कर सकते हैं। ऐसे कार्यों से हम अपनी व दूसरों की दुनिया बदल सकते हैं। तो आइए हम सब इसे अपनाएं, इसका हवन करें। इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करते हुए विकसित करने का प्रयास करें। इसी दिव्य गुणों की प्राप्ति से हम सब सभी प्राणियों को इसी दिव्यता के साथ देखें और परमार्थ करें। इसी कामना के साथ…

परिचय :- सुनीता चौधरी ‘सरस’ वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका
निवास : अबोहर फाजिल्का (पंजाब)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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