मजबूर मजदूर
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रचयिता : किशनू झा “तूफान”
तन से बहता रोज पसीना,
हर दिन होता दुर्लभ जीना।
खाने की तो बातें छोडो़,
मुश्किल जिसको पानी पीना।
मन में जिसके टूटे सपने,
हर उम्मीद अधूरी है।
मजदूरों की किस्मत में,
जीवन भर मजदूरी है।
सत्ता लाखों वादे करती,
उनसे अपनी जेबें भरती।
निर्धन मजदूरों के घर की,
मजबूरी से रात गुजरती।
पेट पालने की ख़ातिर,
मजदूरी बहुत जरुरी है।
मजदूरों की किस्मत में,
जीवन भर मजदूरी है।
दिल्ली से सब गावों में,
मजदूरों को पैसे आते।
सड़क लैटरिंग पैसे सारे,
पहले नेता जी खा जाते।
मजदूरो को कुछ न मिलता,
मजदूरी मजबूरी है ।
मजदूरों की किस्मत में,
जीवन भर मजदूरी है।
नाम – किशनू झा “तूफान”
पिता – श्री मंगल सिंह झा
माता – श्रीमती अंजना झा
निवासी – ग्राम बानौली,(दतिया)
सम्प्रति – बी. एससी. नर्सिंग
अध्यक्ष – सत्यमेव जयते महाशक्ति संगठन
सम्मान – मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा साहित्यकार सम्मान, कर्नाटक द्वारा साहित्य भूषण सम्मान, शब्द मधुकर सम्मान, जालंधर द्वारा काव्य शिरोमणि तुलसीदास सम्मान
विधा – गीत, गजल, दोहा, मुक्त, छन्द आदि
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