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मजबूर मजदूर

कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

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औजार हथौड़ा हाथ में ले कर
अपनी हाथों पर छाले सजाते।

रुखी सुखी खाना खा कर
देशवाशियों के भूख मिटाते।

सूरज से तपती धरती पर
अडिग खड़े कुदाल चलाते।

दिनभर अपना खुन जला कर
रात को बेसुध नींद समाते।

सुर्य तपन,ओलो की मार से
उनके हृदय हर दम घबराते।

कभी बारिश तो कभी सुखार के
चिंता में पुरा वर्ष गुजारते।

कभी नीले अम्बर के नीचे
फटी चादर ओढ़े सो जाते।

ऊँची ऊँची इमारत बना कर
अपना धर्म कर्म निभाते।

झुग्गी झोपड़ी आशियां उनका
दूजे का शीशमहल वो सजाते।

सबके घर घर रौशन करके
खुद के घर डिबरी वो जलाते।

दो जुन की रोटी पा कर
बच्चों संग चैन की बंसी बजाते।

फसल लहलहाए या सुखा पड़ जाये
फिर भी मालिक तक अनाज पहुचाते।

शरीर का हिस्सा हिस्सा झोंक
परिवार के लिये दिहाड़ी कमाते।

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परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित 

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