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तिरंगे के खातिर

रवि यादव
कोटा (राजस्थान)

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जहाँ तिरंगे के खातिर वो
सूली पर, चढ़ जाते हैं,
जहाँ तिरंगे की खातिर,
हंसते-हंसते मर जाते हैं,
जहाँ तिरंगे के खातिर,
जीवन अर्पण कर जाते है,
जहां तिरंगे की खातिर
भारत, दर्पण बन जाते हैं,

उसी तिरंगे का भारत में,
ऐसा हालात बना देखो,
कहीं जलाकर फेंका है,
ऐसा आघात करा दे,
रोते होंगे राजगुरु,
सुखदेव भगतसिंह आंखों से,
जिनके लिए दिया जीवन,
जलते देखा उन हाथों से,

भगत सिंह कहते है…….

हमने उसके लिए सदा,
माँ-बाप को पीछे छोड़ा है,
इसकी आजादी के हित,
अपनों से चेहरा मोड़ा है,
भूखे प्यासे रहकर भी,
शोणित से नित श्रंगार किया,
खुद हुए चुपचाप मगर,
अपने हिस्से का प्यार दिया,

परिवार हमारे भी थे,
गर सोच बनाते जीवन में,
छोड़ के आजादी सपना,
गर मौज बढ़ाते जीवन में,
गुलाम दासता जीते फिर,
ऐसा आबाद नहीं होता,
गर सोच जो ऐसी रखते तो,
भारत आजाद नही होता।।

परिचय – रवि यादव
निवासी : कोटा राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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