वंदना गोपाल शर्मा “शैली”
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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मां कभी धूप सी… तो कभी छांव सी होती है… मां के लिए बेटियां कभी पराई नहीं होती है!
बहुत डांटती थी मां बचपन में, तब धूप सी लगती थी! जैसे धूप का विटामिन ई मजबूती प्रदान करता है, सहनशीलता भी बढ़ाता है और ज्यादा लाड़ बिगाड़ता है मानों शुगर बढ़ाता है।
अधिकांशतः मांएं कहती है- “बिटिया…! तुम्हें दूसरे घर जाना है, समायोजन भी सीखना है, कभी तुम्हारे लिए रसोईघर में सब्जी न बचे तो आचार या दही से खा लेना पर शोर न मचाना बच्चों की तरह… मेरे सामने सब चलेगा पर वहां नहीं, क्योंकि मैं जन्मदात्री हूं और सासुमां धर्म की मां होगी।” वगैरह-वगैरह…!
कितना सीखाती थी मां।
बचपन में कभी एहसास नहीं हुआ कि मुझे अकेला छोड़ा हो, जरूर मेरे जन्म पर भी सबसे पहले मां ही खुश हुई होगी, हम भाई-बहनों की परवरिश और प्यार में कभी भेदभाव नही कीया। वो हमारी छोटी बड़ी सभी जरूरतों से परिचित होती थी।मां सचमुच प्यार का सागर है, यूं कहूं कि महासागर है, बचपन में यदि प्रतिदिन हमारी प्रतीक्षा करने वाला वो कोई खास हो तो मां ही थी , जबकि पिताजी यही कहते थे, “होगी आसपास आ जायेगी।”
मां की वह छत भी बहुत याद आती है, जहां हम भाई-बहन चांद तले सोते थे , और मां से प्रेरक कहानियां सुनते थे। मैंने अपनें व दूसरों के हाथों बने भोजन में भी मां के हाथों बने भोजन का स्वाद तलाशा है। हमनें इस दुनिया में आंख नही खोली थी तब से मां कोख में हमारी हिफाजत करती आयी है। जब-जब मां साथ रही मुझे लगा ही नहीं उन अंधेरों से डर, क्योंकि मां ही मेरा उजाला रही।
वो कसीदे वाली चादर मां रात भर जागकर बनाती थी, मेरी शादी में देने के लिए! पिताजी जब डांट लगाते, तब मां आराम करती थी। आज भी सीखाती ही है, कभी-कभी डांटती भी है मेरे ही बच्चों के सामने, जब मैं अपनें बच्चों पर हाथ उठाऊं तो वह उन्हें बचाती है तब लगता है, मैं, मां के लिए परायी नही हूं, इसीलिए तो पहले की ही भांति डांट लगाती है।छोटे होते परिवार को देखकर मां चिंता करती है, आज भी संयुक्त परिवार को महत्व देती है, उनका मानना है संयुक्त परिवार में सदस्य अधिक होते हैं लेकिन सब मिलजुल कर काम करते हैं…और एक दूसरे की परवाह करते हैं!
भले ही छोटी-मोटी बात पर अनबन हो जाए, सब फिर से मिल भी जाते हैं, एक दूसरे का ख्याल तो रखते हैं। एक बात अवश्य कहती हैं- यदि घर पर डांट पड़े तो गलती छोटी हो या बड़ी या गलती न भी हो हमेशा बड़ों के समक्ष झुकना, यही विनम्रता हमें सबसे जोड़कर रखती है।मां सीखाती थी- “संगति का असर बहुत जल्दी पड़ता है, इसीलिए सदमार्ग ही चुनना… आज मैं हूं गुरू तुम्हारी… कल तुम भी अपने बच्चों को की पहली गुरू बनोगी, इन बातों का को ध्यान में हमेशा रखना और जीवनपथ पर बढ़ते रहना ……!”
एक मां अपनी संतान को उत्तम नागरिक के रूप में ,समाज व देश में अपनी पहचान बनाने में श्रेष्ठ भूमिका निभाती है।
मां यह की सीख हमेशा याद रखना… “तू मेरी छाया है बस यही कॉपी बनकर दिखाना !” “हां मां !बस कोशिश यही रहती है मां।”
प्राय: बेटे मां की नजर के सामने ही होते हैं … पर बेटियां बहुत दूर होती है ससुराल में, पर दिल के बहुत करीब होती है। निवेदन उन बेटे-बहुओं से भी, जो कमाने-खाने के उद्देश्य से बाहर बस गए हो… वे अपने माता-पिता की परवरिश न भूलें, और संभव हो तो उन्हें भी अपने साथ रखें, उन्हें अकेला न छोड़े …!” “बचपन में जब अंधेरों से डर लगता था तब मां रोशनी बनकर हमेशा साथ होती थी… आज बुढ़ापे में हमें उनकी लाठी बनना होगा!”
परिचय :- वंदना गोपाल शर्मा “शैली”
निवासी : भाटापारा छत्तीसगढ़
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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