विशाल कुमार महतो
राजापुर (गोपालगंज)
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जो बिन दिखाए रोता है, आंसू छुपाये रोता है,
और सारी उम्र तुझे अपनी दिमाग मे ढोता है।
जो बिन दिखाए रोता है, आंसू छुपाये रोता है,
और सारी उम्र तुझे अपनी दिमाग मे ढोता है।
वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है।
अपनी परिवार को खुश देखकर
जो खुशियों से फुल जाता है ।
और मेरी एक मुस्कान पर,
अपने लाखो गम वो भूल जाता हैं।
जो खुद बनकर रेशम तुझको मोती समान पिरोता है,
वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है।
मुझे कामयाब बनाने के लिए,
जो मेहनत दिन रात करता है।
और उसके बारे में क्या लिखूं,
जो खुद भूखे रहकर मेरा पेट भरता है।
मुझे देकर रौशनी जो खुद अंधेरे में सोता है,
वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है।
क्या झगड़ा क्या विवाद है,
बस इतना ही अब याद हैं।
उसकी हर डांट मेरे लिए,
एक बहुत बड़ी आशीर्वाद हैं।
तेरी ही कहानी में जिसका तो हर किस्सा होता है,
वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है।
जो बिन दिखाए रोता है, आंसू छुपाये रोता है,
और सारी उम्र तुझे अपनी दिमाग मे ढोता है।
वो कोई और नही महोदय सिर्फ एक पिता होता है।
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