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मूर्खमेव जयते युगे युगे

राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”
भवानीमंडी (राज.)

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पुस्तक समीक्षा
कृति :- मूर्खमेव जयते युगे युगे
लेखक :- विनोद कुमार विक्की
प्रकाशक :- दिल्ली पुस्तक सदन शाहदरा,नई दिल्ली
पृष्ठ:-११९
संस्करण :- प्रथम २०२०
समीक्षक :- राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित”

देश के ख्यातिनाम व्यंग्यकार विनोद कुमार विक्की अपनी पैनी लेखनी के लिए जाने जाते हैं। प्रस्तुत व्यंग्य कृति मूर्खमेव जयते युगे युगे के सारे लेख सामाजिक विसंगतियों व जीवन की विभिन्न समस्याओं से जुड़े हैं। राजनीति शिक्षा साहित्य जगत में सामयिक हलचल की पोल खोलते हैं।
इस कृति का पहला व्यंग्य तेरी मेरी भौं भौं से लेकर अंतिम व्यंग्य स्वेदशी दीपावली तक पढ़ने से मेरे मस्तिष्क में सहसा आया कि आज का इंसान इतनी भागदौड़ करता है फिर भी उसके जीवन मे शांति नहीं है। आदमी क्या क्या जुगाड़ नहीं करता है।
तेरी भौं भौं मेरी म्याऊं में नेताओ के झूंठे वादे के बारे में बताया की नेता सिर्फ वादे कर कुर्सी हथिया लेते हैं। जनता उनके जाल में फंस जाती है। भारत में गरीबी का आकलन न्यूज़ चैनल बखूबी करते हैं शानदार लिखा।
कटघरे में मर्याफ़स पुरुषोत्तम में कलयुग की कोर्ट का दृश्य का वर्णन सजीव किया है। धार्मिक मान्यताएं नहीं है तो फिर लाल कपड़े में लिपटे धार्मिक ग्रंथ पर शपथ क्यों दिलाई जाती है।

इस कविता की आवरण कथा मूर्खमेव जयते युगे युगे में बताया कि मूर्खता हमारे रोम रोम में बसी है लेकिन फिर भी हम परिचय बुद्धिमानी का देते हैं। आज का आदमी चेतनाशून्य भी नहीं है वह विकास व उत्थान के लिए संघर्षरत रहता है। बन्द चक्काजाम करना हड़ताल आगजनी जैसे सरल प्रयोग आदमी करते ही रहते हैं। आजकल डिजिटल आंदोलन भी होने लगे हैं फेसबुक ट्विटर इंस्टाग्रान व्हाट्सएप्प आदि से करने लगे हैं। इस व्यंग्य आलेख के माध्यम से विक्की ने समाज की समस्याओं का हल ढूढने के स्थान पर समस्याएं उतपन्न करने की बात रखने का प्रयास किया है।

आश्वासन और शपथ ग्रहण में समाजसेवा देश उद्धार की बातों का सच उजागर किया है। आज नेता जनता को झूंठे आश्वासन देकर साम दाम दंड भेद के हथियार अपना कर सत्ता किस प्रकार हथियाते हैं बताया है। आज के नेताओ को जनाधार की नहीं पार्टी पर विश्वास व अपनी जाति वालों पर विश्वास के बल पर बड़े से बड़ा चुनाव जीत लेते हैं। इनका एक ही नारा होता है ” पार्टी की लहर व जाति की मेहर।”
आज के नेता सोचते है पहले स्विस बैंक में खाता खुल जाए फिर जनता की सेवा करेंगे।
वो गीत याद आता है ” कसमें वादे प्यार वफ़ा बातें हैं बातों का क्या”।
चुनावी हास्य फल में बारह राशियों का हास्यफल मुझे बहुत पसंद आया। इसमे कलियुगी नेताओं के गुणों का बखान किया है। उनकी विशेष योग्यताएं बताई है।

फेसबुक की उपयोगिता में व्यंग्यकार ने फेसबूक के उपयोग गिनाए जिनमें प्रमुख हैं समानता खुशफहमी ईगो डेवलेपर फेसबुक एज डॉक्टर समाजसेवी प्रमाण पत्र ओकात प्रदर्शनी ज्ञान प्रखर केंद्र परिपक्व पाठशाला खुन्नस निकालने का माध्य्म फेसबुक है।
सोशल मीडिया शिक्षा केन्द्र व्यक्ति के लिए फेसबुक, ट्विटर इंस्टाग्राम कीआज इतनी जरूरत बन गया है जैसे जीवित रहने के लिए रक्त, ऑक्सीजन व जल जरूरी है। लोग मोबाइल में व्यस्त है क्या यही जिन्दगी है। आप पांचवी पास हो या पी एच डी की हो यू ट्यूब के गुरुकुल में सभी छात्र समान है।

सीजनल साहित्यकार में बताया कि ऐसे साहित्यकार कवि आल इन वन होते हैं। ये कॉम्बो पैक की तरह होते हैं। इन्हें मल्टीटेलेंटेड साहित्य सेवी, सर्व रस कवि, व्यंग्यकार आलोचक सभी इनमे होता है। जरूरत पड़ने पर यह सीजन के मुताबिक साहित्य सृजन करते हैं।

स से समीक्षक व्यंग्य में समीक्षक की तीन प्रजातियां पढ़ी जिसमे समीक्षा करने वालों की हकीकत सामने आती है।
मैं कुर्सी हूँ व्यंग आत्मकथा शैली में लिखा है कुर्सी कहती है मैंने अपने लिए अपनों को मेरे ऊपर बैठने के लिए लड़ते देखा है आज यही हो रहा है। कुर्सी कहती है कि कुर्सी पर चित्र तो बदलते है लेकिन चरित्र नहीं। आज लोग चित्र पूजा पर ध्यान देने लगे है और चरित्र सस्ते में बेचने लगे हैं।

भारतीय रेल दर्शन में प्लेटफॉर्म को उठाईगिरी पॉकेटमार आदि कामों का वर्किंग पैलेस बताया है। यह वैश्विक आश्रय स्थल है। अखिल भारतीय भिक्षावृति केंद्र, जीवन मुक्ति केंद्र,स्वरोजगार विदाउट जी एस टी निशुल्क विज्ञापन केन्द्र, चलत मनोरंजन केन्द्र प्रसाधन उत्कीर्ण कला सृजन केन्द्र के रूप में कार्य करते हैं। सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। बाहरी सफाई के साथ ही रेलवे प्लेटफॉर्म पर चल रहे अन्य क्रियाकलापो को रोकने की जरूरत हैं।
मैं जुता हूँ व्यंग्य में जूते की आत्मकथा पढ़ी। जूता कहता है इन दिनों मेरी अहमियत बढ़ गई है। मेरे अच्छे दिन आ गए हैं। अब तो जूते रसोईघर के भीतर तक जाने लगे हैं। लोग जूते पहन भोजन बनाते है और खड़े खड़े जूते पहन ग्रहण भी करते हैं। विक्की लिखते हैं पुस्तक भगवान की मूर्ति फुटपाथ पर बिकती है लेकिन जूते एयरकंडीशन शो रूम के सुन्दर शो केस में सम्मान के साथ सजाये जाते हैं।
पत्नी पाकिस्तान और पेट्रोल ये तीनो अनिश्चतता का पर्याय हैं। उछाल उबाल बवाल मचा देते है ये तीनो । जैसे ही पेट्रोल डीजल की कीमतें बढ़ती है बस किराया बढ़ जाता है।
भारत बंद महोत्सव व्यंग्य में बताया कि आजकल बिना कोई कारण आज भारत बंद कर दिया जाता है। आज जरूरत है बाकायदा संसद में विधेयक पास करने की। जो कानूनी मान्यता प्राप्त हो।
यक्ष व्यंग्यकार वार्ता,भी इस कृति की महत्वपूर्ण रचना है।
सेटिंग शीर्षक से लिखे व्यंग्य में बाबू लोगो के रिश्वत लेने की आदत के बारे में लिखा है। आजकल रिश्वत लेने वाले बाबू कैसे बच निकलते हैं ये बताया है। वकील को रिश्वत के दो दिनों में दस लाख देकर बाबू बन्दीगृह जाने से बच जाते हैं। जैसे लोहे को लोहा काटता है जहर को जहर काटता है वैसे ही रिश्वत को रिश्वत काट देता है। सरकारी महकमो में रिश्वत से काम पूरे होते हैं। नॉकरशाही की पोल खोलता व्यंग्य अच्छा है।
मैं भी व्यंगकार में लेखक अब व्यंग्यकार बनने की होड़ में लगे हैं। व्यंग्य फ्लू से पीड़ित होने की उत्कट अभिलाषा रखते हैं। क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कवि लेखक थोक में मिलते हैं।
लोकतांत्रिक स्वप्न व्यंग्य में नेक राष्ट्र अनेक राष्ट्र एवम असहिष्णुता के बारे में विस्तार से लिखा है।
सरस्वती माता की जय व्यंग्य में माता के नाम पर चन्दा एकत्रित करने वाले तथाकथित युवाओं के बारे में लिखा है कि सरस्वती पूजा के बहाने जबरिया चन्दा वसूला जाता है। भोजपुरी गानों पर कमरतोड़ डांस किया जाता है। लेखक लिखता है कि जैसे मार्च क्लोजिंग के समय भारतीय बैंक कर्मचारी व्यस्त रहते है वैसे ही ये बेरोजगार नवयुवक क्लब के युवा व्यस्त रहते हैं।
पुस्तक विमोचन व्यंग्य में लेखक को किन किन परिस्थितियो में अपनी कृति का विमोचन करवाना पड़ता है उसकी हकीकत बयां की है।
अरे थोड़ा ठहरो बापू व्यंग्य बहुत अच्छा लगा।
हाय हाय हिन्दी व्यंग्य में बताया कि हिन्दी सेवी भी उर्दू संस्कृत अंग्रेजी आदि का छोंक लगा देते हैं। यह करना फैशन है या मजबूरी। हिन्दी की सेवा का दिखावा करने वालों की सच्चाई बताई है।
रावण दहन व्यंग्य में बताया कि त्रेता के रावण ने माता सीता के साथ जो बर्ताव किया उसके लिए उसका पुतला इंसान हर साल जलाते हैं। लेकिन कलयुग के रावण तो दिन दहाड़े अस्मत लूट रहे हैं लेकिन जलना लड़कियों को पड़ता है। आखिर ये न्याय कैसा।
आज़ादी की चाहत में बताया कि भारतवासी कश्मीर की आज़ादी ऐसी पाना चाहते है जैसे रिलायंस जियो ने शुरुआती दौर में ग्राहकों को पूर्ण आज़ादी दे दी थी। आज पत्थरबाजों को आजादी चाहिए धन्ना सेठो को विदेशी बैंकों में रुपया रखने की आजादी चाहिए।
बेगानी शादी में अब्दुल्ला केमरामेन आज शादियों में हम देखते हैं जो केमरामेन बड़ी रकम देकर हम बुलाते है उनको बड़ी परेशानी आती है। दूल्हा दुल्हन के स्टेज पर आते ही मुफ्त मोबाइल केमरामेन कैसे भीड़ कर लेते हैं। दर्शक दीर्घा में बैठे दूर दूर से आये रिश्तेदार उनकी पीठ देख मन ही मन दुखी होते रहते हैं। इस फ़ॉर जी युग मे हाल की ली ताजा तस्वीरें वीडियो देखी जा सकती है। आज कौन प्रतीक्षा करे केमरामेन कब एल्बम लाकर देगा। चहारदीवारी में बड़ा सा घूंघट लेनी वाली सपना चौधरी के गानों पर शादियों में डांस कर लेती है।
राष्ट्रीय मनोरंजन कक्ष यानी संसद में ५४५ सदस्य चुन कर भेजे जाते है जो राष्ट्रीय समस्याओं व विकास की बातें नहीं करते है वे संसद में आरोप प्रत्यारोप में समय बिता देते हैं। ऐसे ही ५ साल गुजर जाते हैं
खादी मानव भर्ती विज्ञापन में आज के नेताओं की खूबियों को बताता है ।
उफ ये साउथ की फिल्में में रिपिटेड बॉलीवुड फिल्मों की बात कहता है आज वही फ़िल्म रिपीट हो रही है।
शुभ-अशुभ व्यंग्य में बताया कि हम अंधविश्वास में उलझते रहते हैं। अर्थी के दर्शन करने से सफलता मिलती है। हाथ धोकर नहाकर घर मे जाना है आदि बातें अंधविश्वास बढाती है पी सी एस का इंटरव्यूह देने युवा जा रहा है वह अर्थी को कंधे नहीं देता हैं।
व्यथित लेखक उत्साहित व्यंग्य में बताया कि किसी नए लेखक की रचना जब नहीं छपती है तो संपादक बहाना बनाते है डाक की गड़बड़ बताते हैं। कभी रचनाओं की स्तरता की बात बताते हैं। रचनाओं को छपवाने के लिए संपादक कैसे सदस्य बनाने की बात करते है । ये सभी हास्यापद लगता है।

मुद्दा मानदेय में एक संघर्षशील लेखक रचना छपने के ७ माह बाद मानदेय की याद संपादक को दिलाता है जो संस्था हिंदी संस्थान से संरक्षित है वे लेखकों को मानदेय क्यों नहीं देते है। ये भी सोच का विषय है। आखिर मानदेय कहाँ जा रहा है।
अरे थोड़ा ठहरो बापू में बताता की आज नेता तो आंख मूंद लेते है वही गांधी जी का पहला बन्दर है। प्रशासन सुनता नहीं जनता के दुख दर्द तकलीफ को यही गांधी जी का दूसरा बन्दर है। जनता मुँह बन्द कर लेती है खामोशी से चुपचाप सहती है यह गांधीजी का तीसरा बन्दर है।
बरसात गढ्ढा और नेताजी में सड़कों की दुर्दशा का कारण खराब मटेरियल बताया है। मंत्री जी नेचुरल स्विमिंग पूल की बात कह हंसते है खेलेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया। सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा बताई है मरीजो को पलँग नहीं मिलते। नीचे जमीन पर लिटाकर बोतल चढ़ा रहे हैं। लोकतंत्र व राजतंत्र में अंतर बताने का काम किया है विक्की जी ने।
आज़ादी की तलाश में इंडियन पी के आजादी की तलाश मोह का त्याग अन्तःकरण की शुद्घता लालफीताशाही तंत्र आदि के बारे में बताया है।

मैं स्त्री हूँ मै लड़की के पैदा होने पर घर मे मातम छा जाना पिता की चिंता बढ़ जाना आदि जो समाज की सोच है उसे बताया है।
लड़की बड़ी होती है तो गांव में उसे कृषि कार्य मे लगा देते हैं खेत ओर सड़कों पर आबरू कैसे तार तार करते है लोग ये करुण कहानी आज देश की एक लड़की की नहीं बल्कि सबकी है। नवरात्रि पर लोग कन्या ढूंढ कर भोजन कराती है। आज कल हवस के भेडियो को दो से दस साल की मासूम लड़कियों में भी कामिनी नज़र आती है। आज इन मासूम को ये भेड़िये नोच खसौट लेते हैं। कोई इन्हें रेडलाइट एरिये में तो कोई कोठो पर बैठा देते हैं। कोई इन्हें घर मे कैद कर चकला संचालक बाई बनाकर अभिशप्त करते हैं। महिला सशक्तिकरण का ये व्यंग्य इस कृति के प्राण हैं।

फेसबुक पर रोजनामचा व्यंग्य में बताया कि रोज रोज कुछ भी पोस्ट डालने वाले को जब कुछ भी नहीं सूझता है तो वह रोजनामचा ही पोस्ट कर देता है फिर वह लाइक कमेंट गिनने लगता है।
ऊपर ऊपर पी जाते हैं। इस मे बताया कि ऊपर बैठे लोग जनता तक लाभ नहीं पहुंचने देते हैं।
किसी ने क्या सुन्दर लिखा है ऊपर ऊपर पी जाते है जो कि पीने वाले हैं। कहते ऐसे ही जीते है जो जीने वाले हैं। सरकारी कार्यालयों में लोग फाइल आगे बढ़ाने के लिए रिश्वत रूपी अमृत सुधा का पान करते हैं। बौद्धिक व आर्थिक रूप से ऊपर वाले लोग आरक्षण का सोमरस पीते हैं।
साहित्यकार योनि का जीवन चक्र में बताया कि 84 लाख योनियों में एक साहित्यकार योनि भी होती है जो प्रकाशक समीक्षक संपादक के शोषण के शिकार होते हैं। आर्थिक अनुदान व आर्थिक योगदान के लिए भटकते रहते हैं। झोलबोरी ओरक्षं इन्हें ५०-१०० लेखकीय प्रतियां दे देते हैं। फिर ये बडे साहित्यकार बनने का ढोल सोशल मीडिया पर पीटते नजर आ जाते हैं।

कलेस की दरबार मे झल्लू व्यंग्कार व्यंग्य आलेख महत्वपूर्ण है।
जिन्ना चाचा का इंटरव्यूह में वर्तमान सरकार हमारी कौम की विरोधी लिखकर हकीकत बता दी है। पहले तुमने जिन्ना राजनेतिक हित व दल को सम्प्रदाय के नाम पर बांट रहे है वैसे ही आज ढेर सारे खद्दरधारी जिन्ना वोट के लिए दिल व दल को सम्प्रदाय के नाम पर बांट रहे हैं।
जोड़ियां तो ईश्वर बनाते है में आज दहेज के लालची लोग किसी भी तरह का भी समझौता करने को तैयार हो जाते हैं दामाद सरकारी नॉकरी वाला हो ये वधु पक्ष की मांग है तो वर पक्ष वाले ४५ लाख दहेज की मांग करते हैं। बिचोलिये शादी तय कराने का काम रुपये से किस तरह कराते हैं बताया हैं। ईश्वर की बनाई जोड़ी को नीचे वाले ने मान्यता दे दी।

स्वदेशी दीपावली व्यंग्य में देशभक्ति का जज्बा संजोए सच्चे देशप्रेमी की कहानी है जो दीवाली की पूरी रात मिट्टी के दिये कि रोशनी करने के लिए रात भर तेल भरता रहा। लोग इलेक्ट्रिक दीपक से घर रोशन करते रहे। स्वदेशी अभियान देश रक्षा का मैसेज करना ये सब स्वदेशी है। स्वदेशी अपनाने से कितनी हानि होती है इस व्यंग्य में बताया है। गरीब व्यक्ति कम रुपयों में इलेक्ट्रिक दीपक से कई दिनों तक अपने घर को रोशन कर सकता है लेकिन वह रोशनी स्वदेशी नहीं मानी जायेगी। यही अन्तर के कारण लोग कई बातें नहीं अपनाते हैं।।
संक्षेप में मूर्खमेव जयते युगे युगे में बताया कि मूर्ख लोगों की किस कारण से हर युग मे जय जय कार होती है। सभी व्यंग्य आलेख समाज मे व्याप्त बुराइयों को बताने में सक्षम हैं।
मैं इस कृति के युवा व्यंग्यकार भाई विनोद कुमार विक्की जी को हार्दिक बधाई व मंगलमय शुभकामनाएं देता हूँ। आप इसी तरह सृजन करते रहें। ये कृति आपको नई पहचान दिलाये।

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लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा “पुरोहित” भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान


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