संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी।
शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेशों में पसंद किया जाने लगा है। शाकाहार शरीर और मन मानवीय संवेदनाओं का सही रूप में पहचान करवाता है। शाकाहार बीज, वनस्पतियों से बनाए गए आहार को शाकाहार कहा जाता है। इसका उपयोग हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। भोजन तत्व की हमारे शरीर को आवश्यकता होती जैसे प्रोटीन, वसा, ऊर्जा (कैलोरी ) चाहिए वो शाकाहारी भोजन से पूर्ण हो जाती है। प्राचीन समय से ही जीवन शैली में शाकाहारी भोजन स्वस्थ्यता का प्रतिक माना गया है। विकसित देशों का झुकाव इस और बढ़ा और उनमे भी शाकाहारी भोजन का अनुसरण करने की सोच विकसित होने लगी है। मांसाहार की तुलना में शाकाहार सस्ता और सुलभ होता है। शाकाहारी भोजन शीघ्र पच कर बिमारियों को आने से रोकता है। स्वस्थ चित मन, तामसी प्रवृति को दूर करने हेतु शाकाहार भोजन को प्राथमिकता देना आवश्यक है ताकि शरीर में प्रतिरोध क्षमता बढ़कर जीवन में स्वस्थ्यता का लाभ प्राप्त किया जा सकें। इससे ये मालूम होता है कि कोरोना जैवविविधता संरक्षण-हमारे समाधान प्रकृति में है।
नीम, तुलसी आदि कई पेड़-पौधे जो संक्रमण रोकथाम हेतु रोगनाशक होते है। गेंहू की कोठियों में नीम के पत्ते डालते है। पत्तियों को उबालकर स्नान टहनियों से दातुन आदि का उपयोग करते आरहे है। तुलसी भी वायुमंडल को स्वच्छ कर, चाय में पत्तो को डालकर निरोगी रहने की परंपरा विधमान है। गोमूत्र का घरों में छिड़काव एवं पोछा लगाने में उपयोग काफी लाभप्रद रहता है। कहने का तातपर्य संक्रमण रोकने के सस्ते औऱ सुलभ साधन प्राचीन समय से कई लोग उपयोग करते आये है। इनका भी उपयोग भी करते रहना चाहिए। शासन प्रशासन के द्धारा कोशिशे सुधार की जारी है मगर लोगो की लापरवाही नियमों के उलंघन से संक्रमण को बढ़ा रही है। संक्रमण रोकना है तो घरों में रहकर संक्रमण दूर करने के नियमों का पालन करना होगा। एक जानकारी के मुताबिक अमेरिका की नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं कोरोना रोगियों पर नज़र रखने का नया तरीका ईजाद किया है। अमेरिका की नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं डाक टिकट के आकार का सेंसर युक्त उपकरण तैयार किया जो बेहद मुलायम और लचीला है। इसे गले के निचले हिस्से पर लगाया जा सकता है। त्वचा पर होने वाले बेहद मामूली कंपन, श्वसन तंत्र पर नज़र, खांसी की गणना आदि कर बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान करने वाले उपकरण से कोरोना रोगियों पर नजर रखने में आसानी होगी। ऐसे उपकरण की सुविधा बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही पहचान करने हेतु मंगवाए जाना चाहिए ताकि ये चिकित्सा के क्षेत्र में मददगार साबित हो। इसके साथ ही अतिमहत्वपूर्ण आवश्यक सेवाओं के कार्यालयों छोड़ कर शेष पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। महामारी से अंतराष्ट्रीय स्तर पर सब देश जूझ ही रहे है देश पर जब आपदा का हमला हो तो निर्णय लेना आवश्यक की पूर्णतया घर से बाहर ना निकलने का संकल्प संक्रमणता तो काफी कम कर सकता है। और ये ही संक्रमण से बचाव का सही तरीका है। साथ ही इस बात की ट्रेंनिग भी है। यदि कभी भविष्य में युद्ध की स्थिति बनती तो इसप्रकार के हालातों से निपटने हेतु आत्मनिर्भर बन कठिनाइयों का सामना आसानी से कर लेंगे। सुविधाओं को देखें तो कोरोना से जंग मदद करेंगे रोबोट्स। सिंगापूर में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए बॉस्टन डायनैमिक्स के ‘डॉग ‘रोबोट्स का इस्तेमाल किया जा रहा है। कई प्रकार के रोबोट्स ऐसे भी है जो इसकी रेंज में आने वाली लाइट्स सूक्ष्मजीवों के डीएनए या आरएनए को नष्ट कर देती है ऐसे रोबोट्स को मंगवाना चाहिए ताकि कोरोना के अलावा दूसरे कार्यों में मददगार साबित होकर व मेडिकल के क्षेत्र में जाँच में सहयोगी बनकर कोरोना पर शीघ्र काबू पा सकें। इसके अलावा सुझाव है की वर्तमान में कोरोना के हॉस्पिटल के वैकल्पिक व्यवस्था के लिए स्कूल, कॉलेज आदि का उपयोग कई जगह किया जा रहा है। यदि शिक्षण संस्थान खुले तो मरीजों की व्यवस्था के लिए योजना बनानी आवश्यक होगी। दूसरा सुझाव ये है कि कोरोना संकट काल में पुलिस, स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक प्रशासनिक अधिकारी, कर्मचारी आदि के साथ सफाईकर्मी अपने कर्तव्यों का कोरोना पीड़ितों के लिए अपनी सेवा का निर्वहन करते आ रहे है। संक्रमण काल में सफाईकर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जो अपनी जान हथेली पर रखकर संक्रमित मरीज, शव को उठाते एवं हर स्थान की सफाई तालाबंदी के दौरान करते है। गाँव शहरों के सफाई कर्मियों का भी सम्मान होना चाहिए। शासन, प्रशासन के नियमों, निर्देशो का पालन करें। सतर्कता ही हमारी सुरक्षा है।
परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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