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उड़नखटोला

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नीरजा कृष्णा
पटना

‘ये रूपा अभी तक बिस्तर तोड़ रही है, नौ बज रहा है। इस तरह पड़े रह कर तो ये लड़की कभी भी जिम्मेदारी नहीं सीख पाएगी’ ना चाहते हुए भी आनन्द बाबू की आवाज़ काफ़ी तल्ख हो गई।
‘ज़रा धीमे बोलिए ना! बच्ची है, सब सीख जाएगी! कितनी प्यारी सुन्दर हैं अपनी रूपा! देख लेना, एक दिन कोई राजकुमार
आकर मेरी फूल सी बच्ची को उड़नखटोले पर बैठा कर ले जाएगा”
अब तो सहनशक्ति जवाब दे गई उनकी, “शीला! कौन से जमाने में रह रही हो? अब ना कोई राजकुमार आएगा, ना कोई उड़नखटोला आएगा, बेटा बेटी सब बराबर होते है, अच्छी शिक्षा दो, हर क्षेत्र में यथासंभव काबिल बनाओ…यही आज के युग की माँग है।”
पति की बातें सुन कर वो बहुत सोच में पड़ गई ….
‘क्या सचमुच उनकी प्यारी गुड़िया के लिए कोई राजकुमार उड़नखटोले पर नहीं आएगा? क्या सचमुच उनकी रूपा के असीम रूप का कोई मूल्य नहीं है? सोचते सोचते उनको ध्यान आ गया पडौस के शर्माजी की बेटी सुजाता का….किस तरह साधारण रंगरूप वाली वो बच्ची अपनी मेहनत के बलबूते पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित हुई।
यही सब सोचते हुए उनको सुजाता अपनी रूपा से कहीं अधिक रूपवती लगी और एक दृढ़ निश्चय के साथ हौले से रूपा को जगाया,”उठ जा बिटिया! तेरे लिए कोई उड़नखटोला नहीं आएगा! तुझे सीता, राधा या द्रौपदी नहीं बनना है! तुझे दुर्गा बनना है, अपने जीवन की पटरी पर सरपट हवाईजहाज़ उड़ाना है।”
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परिचय : नीरजा कृष्णा, आप कुशल गृहिणी हैं, आपने लेखन कार्य अभी-अभी आरम्भ किया है।
निवासी – पटना


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