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फूलों का हाल

संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
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गये थे आज मंडी में
लेने को कुछ फूल।
वहां जाकर देखा तो
एकदम दंग रह गए।
की जो फूल लेने को
हम यहाँ आये है।
वो फूल पहले से ही
पैरों में पड़े हुए है।
अब मैं कैसे उन्हें लू
प्रभु चरणों के लिये।।

लगता है हमें आजकल
किसी की भी कीमत नहीं।
हर चीज को लोगों ने
व्यापार जो बना लिया।
तभी फूल जैसा नाजुक
पड़ा है लोगों के पैरों में।
जब प्रभु को भी नहीं बख्शा,
तो हम सब की औकात हैं क्या।।

इसलिए इस कलयुग में
नहीं दिखते है प्रभु।
क्योंकि मंदिरों को भी
लोगों ने व्यापार बन लिया।
अब रहेगी कैसे आस्था
प्रभु में लोगों की।
क्योंकि पूजा की सूचीयाँ
लगा दी है जो मंदिरों में।।

गए थे फूल लेने को,
पर खाली हाथ आ गये।
नहीं चढ़ाना अब प्रभुको,
फूल पैसे आदि।
जो करते थे खर्च हम,
इन सब चीजों में।
अब उन पैसों से,
हम बच्चों को पढ़ायेंगे।
और उन्हें नेक इंसान
इस कलयुग में बनायेगें।।

परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ-साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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