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संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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पहले बात को समझना चाहिए
एक वाक्या वो यूँ था- बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ? उसने कहा “गए” यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती-उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर नहीं था।
कुछ दिनों बाद बाबूजी रिटायर होकर अपने गावं चले गए। गाँव में उन्हें वहां के लोग नान्या अंकल कह कर पुकारते थे। गाँव मे रिवाज होता है की मेहमान यदि किसी के भी हो अपने लगते है। गाँव मे उन्हें अपने घर भी बुलाते है। एक वाक्या याद आता है कि- गर्मी की छुट्टियों मे मेहमान आए, बुरा न लगे इसलिए सामने वाले अंकल जो की बाहर खड़े थे जिन्होंने ही घर का पता मेहमान के पूछने पर बताया था। पता बताने के हिसाब से और नेक इंसान होने के नाते गर्मी के मौसम मे ठंडा पिलाने हेतु पप्पू को दौड़ा दिया कहा कि- “जा जल्दी से नान्या अंकल को बुला ला”। मेहमान कहाँ से आए की रोचकता समझने एवं आमंत्रण कि खबर पाकर वो इतना सम्मानित हुए जितना की कवि या शायर कविता/गजल पर दाद बतौर तालियाँ और वाह-वाह के सम्मान से जैसे नवाजा गया हो।
कई लोग महत्वपूर्ण मीटिंगों मे आप को सोते या जम्हाई लेते मिल ही जायेंगे। ऐसा शरीर मे क्यों होता है ये मै नहीं जानता जो आप सोच रहे हो और ये भी नहीं जानता की मेरा कसूर क्या है ? विदेशो में घूमे जाने के हजारो किस्से नान्या अंकल मेहमानों को बता रहे मगर मेहमानों ने कहा- अंकल अपने देश में घूमने लायक एक से बढ़कर एक जगह है, बस इस बात का वे बुरा मान गए और कहने लगे की मेरे “मन की बात” को कोई ठीक तरीके से समझते क्यूँ नहीं। और वे उठ कर चल दिए। कई सालो बाद वही मेहमान फिर गाँव मे आये तो उन्होंने नान्या अंकल को देखा जो की ज्यादा बुढे हो गए थे लेकिन अपने विचारो पर थे अडिंग। उनकी नजरे भी कमजोर हो गई, किन्तु सामने वाले मेहमानों ने उन्हें पहचान ही लिया। वे एक दूसरे के कानो मे खुसर-पुसर कर कहने लगे यही तो है अंकल। उन्होंने सोचा की शायद उस समय हमसे ही कोई समझने की भूल हो गई हो क्षमा मांगने का और उनसे कहने और समझने का यही मौका है। सबने नान्या अंकल से माफी मांगी। नान्या अंकल मन ही मन सोचने लगे कि- मेरा क्या कसूर है? ये लोग वाकई नासमझ है जो बुजुर्गो की बातो को ठीक तरीके से नहीं समझते।
परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)
शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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