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अंतिम निर्णय

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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आज सपना के पापा की पहली बरसी थी मम्मी के कहने पर सपना वृध्दाश्रम में भोजन की व्यवस्था कराने पहुंची थी, प्रवेश करते समय सामने आफिस मे बैठे कबीर अंकल कीओर सपना की नजर पड़ी।
सपना ने कहा अरे ! कबीर अंकल आप यहाँ?
अंकल कहने लगे बिटिया अब तो यही अपना घर है बेटा मैं अब यहीं रहने लगा हूँ कहकर तेजी से उठकर चल दिए जैसे अपना दर्द छुपा रहे हो।
सपना भी अपने काम में व्यस्त हो गयी। यहाँ की व्यस्तता के बीच सपना की नजरें लगातर कबीर अंकल पर थी जो लगातार सपना से छुपने की कोशिश में थे। वृध्दाश्रम के सभी सदस्यों के भोजन का कार्य अच्छे से सम्पन्न कराकर सपना समान गाड़ी में रखवाकर घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उन्हें कबीर अंकल की बात याद आ गयी अब तो यही अपना घर है। सपना ने सोचना शुरू किया कि कबीर अंकल के घर पर दो बेटे और एक बेटी का हँसता खेलता परिवार था। अभी दो साल पहले ही आँटी का स्वर्गवास हुआ। फिर यह सब क्यो? कबीर अंकल के दोनो बेटे डॉ हैं और बेटी विदेश में है फिर अंकल को यहाँ रहने की जरूरत क्यों आन पड़ी। घर पहुँच कर सपना से रहा नहीं गया मम्मी से पूछा मम्मी आज वृध्दाश्रम में कबीर अंकल मिले थे मम्मी ने बीच में ही बोलना शुरू कर दिया बोली पिछ्ली बार जब उनकी भेंट तुम्हारे पापा से हूई थी बहुत ही उदास और परेशान लग रहे थे। हमेशा से हँस मुख स्वभाव वाले तुम्हारे कबीर अंकल जब तुम्हारे पापा ने परेशानी की वजह पूछा तो कहने लगे कि क्या बताये शर्मा जी जिन बच्चों की परवरिश में माँ बाप अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं यह जाने बगैर कि फादया होगा कि नुकसान। वहीं माँ बाप बुढापे में उन बच्चों पर भार बन जाते हैं जहाँ माँ बाप को रखने की बात होती है वहां पहले जमीन जायदाद और हिस्से बटवारे की बात पहले होती है। सन्तानों के बीच माँ बाप को अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है। कही कही महिनों में भी बाटते भी देखा गया है। कही एक बेटे के पास छ: महीने माँ तो दुसरे बेटे के पास छ: महीने पिताजी को रखा जाता है वह
भी ऐसे समय में जब कि उनको साथ रहने की भावनात्मक लगाव की सख़्त जरुरत होती है। बिना कुछ लिये बिना जमीन जायदाद के माँ बाप को रखने को कोई भी तैयार नहीं। क्या हम बच्चों की परवरिश करने के एवज़ में कुछ लेते हैं।

कबीर अंकल अपने ही रौ में बोलते जा रहे थे शर्मा जी आप ही बताइए ऐसा क्यो? हमारी परवरिश में कहीं कुछ कमी रह गई हो शायद।
शर्मा जी ने कहा-निराश मत होइये। और बेटी क्या कहती है? कबीर अंकल ने कहा बेटी अपने साथ विदेश में रखने के लिए तैयार है पर अपना देश अपना घर छोड़ कर भला कैसे जाऊँ। कबीर अंकल ने फिर कहा कि मैनेभी सोच लिया है शर्मा जी अपनी सारी प्रॉपर्टी उस वृध्दाश्रम के नाम कर दूंगा जहाँ मेरे जैसे बदकिस्मत लोग रहते है। वहाँ कम से कम अपनापन तो मिलेगा मुझे। वहाँ किसी चीज के लिए सर झुकाना या फिर किसी की बाते तो नहीं सुननी पड़ेगी मुझे। मैं अपनी सारी प्रॉपर्टी उस संस्था को दान में दे कर चैन और सुकून की जिन्दगीं जीना चाहता हूँ। शर्मा जी ने कहा एक बार फिर सोंच लीजिए कबीर साहब, नहीं-नहीं शर्मा जी मैंने अच्छे और से सोंच
लिया है यही मेरा अन्तिम निर्णय है। और फिर कुछ दिनॉ के बाद ही कबीर अंकल अपना सब कुछ उस वृध्दाश्रम को सौप कर वही रहने
लगे।

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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