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पचपन में बचपन की बातें

हंसराज गुप्ता
जयपुर
(राजस्थान)
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जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं.
साथ मनाते दिन त्योहार, कहीं हाल पूछने जाते हैं,
मोरपंख शंख हो बस्ते में, साथी मिल जाये रस्ते में,
एक दूजे को खडे खडे, जीवन पूरा कह जाते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

पहला प्यार, छाती की धार, सृजन का सुख, सारा संसार,
रुदन उत्पात में दूध दुलार, सोई-जागी संग लोरी-मल्हार,
सूखा मुझको, गीले में आप, सर्वस्व समर्पण,सोच ना ताप,
गुस्सा, लात, दोष सब माफ, प्रतिकार मुझसे,कहलाता पाप.

अब नन्हा-माँ दोनों शर्माते, दूध बोतल में, चाय पिलाते,
तब दही छाछ,माखन खाते, पकडी बकरी,मुँह धार लगाते,
हँसते सब धूम मचाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

बहनों का सम्मान था मैं, भाई के जीवन-प्राण था मैं,
पीढी का प्रतिमान था मैं, अपनों का अरमान था मैं.
बारी-बारी से ग्रास खिलाना, शाला-मिट्ठू-रंग-तास जमाना,
डोर-बाल्टी ले कुए पे जाना, नहा धोकर जल भरकर लाना.

अब क्रेच-प्ले, बोझिल बस्ते, कब होमवर्क नींद, रोते हँसते,
छुट्टी में पाटी फेंक खिसकते, लिपट पल्लू के, मचल-सिसकते,
दादा बिन डाँट डराते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

चढ इमली खाई, डाले से झूले, आया लंगूर, उतरना भूले,
कुत्ते-बिल्ली-खरगोश दौडाये, झाडे बेर, निंबोरी खाये,
लुका-छिपी, च्याऊँ-म्याऊँ, पकडे पिल्लै, प्याऊँ-प्याऊँ,
तीज रेशमी, मछली रंगीली, घर माटी का, दलदल ढीली,

दलदल से जब निकल ना पाते, गहरी हलचल छल लाभ उठाते,
तब हाथ विकल हों, अधर उठाते, महाकाल विजय, उद्घोष लगाते,
यहाँ प्रताप शिवा दिख जाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

कांच के कंचे, फल्डे का चंगा, गा चंग धमाल नाचे बेढंगा,
सोटा-गेंद, गिल्ली व झिल्ली, गद्दे पर रख दें जलती तिल्ली,
हंस की कार, ऊँट, बैलगाड़ी, दूर तक जाते, बाजे के पिछाडी,
ठेकरी के पैसे, चक्कर-ताड़ी, छुपकर बिन बाल बना लें दाढी,

ना शिक्षा नीति, यह फिल्मी दौर, ज्योति कम, कंधे कमजोर,
तब नाटक पाठ लीला में भोर, झाँकी देवों की, भाव विभोर,
क्षण क्षण मोद मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं.
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

राजा मंत्री, शेर का चेहरा, बाराती भी, बांधे सेहरा,
थाने सिपाही, बने चोर जेल, पहरेदार बन गाँव का पहरा,
नाड़ी के वैद्य, डॉक्टर – रोगी, यजमान दाता भी, ज्ञानी जोगी,
कभी साधु, पंडित, राक्षस, ढोंगी, बचपन था, बहुत कहानी होंगी,

निकट संकट की आहट हो, कोई चोर, लुटेरा, लंपट हो,
खटपट हो,आते चटपट, कनपट पर चंपट, बिन संपट,
खाकर सीधे हो जाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं.
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

घंटी, अंटी और धक्कमपेल, रस्साकस-कुश्ती-पंजे का खेल,
मोटर की पों पों, सीटी तो रेल, हों-हों, खो-खो सब रेलम पेल,
पंचतंत्र और महाबीर स्वामी, बुद्ध, राम-कृष्ण के किस्से थे,
गुरू गोविंद, मीरा, तुलसी, सूर के पद, बचपन के हिस्से थे,

जले नीड,भीड़ देखा करती, आग-बाढ़ जीवों को चरती,
फुफकारे नाग, हिले धरती, बाघ-तड़ाग, कोई छत गिरती,
बचना भी खेल सिखाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं.
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

गाँव-गली-घर भेद न पाया, सबका बालक,सबने अपनाया,
आटा-दाल-चीनी लाया दे आया, मेहमान कोई, सबने बैठाया.
झगड़ा-टंटा बड़ों की माया, स्वतंत्र कहीं भी खेला खाया,
दंड क्यों-कब कोई भी पाया, रो-धो-पोंछ हंसता घर आया,

झगडे तगड़े हों आंखें मींच, बच्चों की बात,बड़ों के बीच,
तब जमूरा-तंबू-बंदरिया-रींछ, ससुराल चले सिर डालें कीच,
नई कोट के छाप लगाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं.
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

नंगे पांव, परिधान में पाती, भोजन और पोथी की पांती,
चाकी न चले,मां व्रत बतलाती, चरखे की धुन पर भजन सुनाती.
वे चाची-ताई-दाई-माई, दर्जी-पंडित-नाई-हलवाई,
बुजुर्ग सभी भाई-भोजाई, जीवन ही उनका, कैसी भरपाई?

अब दांव-पेंच है, होडा-होडी, डाकन खुद का घर ना छोड़ी,
नंबर से घोड़ी, गधे की जोडी, लंगड़ी-टांग में हार की पोड़ी,
पद लाद-भार उतराते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं.
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

नितांत निर्धनता, अथाह प्यार, पथ देख बढे, लक्ष्य उस पार,
झेले सर्दी-गर्मी-बौछार, दौडे रातों, मानी ना हार.
कंप्यूटर पूरा फॉर्मेट हुआ, संस्कृति का मटियामेट हुआ,
डिलीट सब, उपसंहार हुआ, फिर अब पहला प्यार हुआ ।।

जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं.
साथ मनाते दिन त्योहार, कोई हाल पूछने आते हैं,
विचारों के गुलदस्ते हैं, सब साथ पुराने रस्ते हैं,
अब यहीं अकेले पडे पडे, खुद को वृतांत सुनाते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

निर्धन जीवन के उथल-धडे, जो एहसानों से दबे पड़े,
सुने कौन, भरे हिवडे, वे लुटे पिटे लाचार खड़े,
बच्चों की खैर मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

रग दुखती, दृग धुंध दिखे, कम्पन्न हाथ में, कौन लिखे,
पग डगमग, एक हाट सखे, हो कर्ण दोष, जिव्हा चीखे,
जब शब्द समझ ना आते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।

परिचय :-  हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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