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चंचल लहरें

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रचयिता : मनोरमा जोशी

मचल उठे चंचल
लहरों के साथ कगारे।
माझी के अधरों ने,
नूतन गान संवारे।
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ज्वार उठा सागर में,
अनगिन घन मंडरायें ,
लहर लहर सागर में,
ताडंव नृत्य दिखाये।
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घिर घिर आता अंबर,
मे घोर अंधेरा,
ज्वार उठा  सागर में,
मांझी दूर सवेरा।
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भीषण लहरों पर तिरती,
आशा की कश्ती,
कर मे माझी ने ली,
आशा की कश्ती
कर मे ली माझी ने,
बाँध प्रलय की मस्ती,
गर्जन तर्जन  में माझी,
मंजिल रहा निहारे।
मांझी के अघरों ने,
नूतन गान संवारे।
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बिन्दु बिन्दु ने आज,
सिन्घु मे विष फैलाया,
करना है विष पान,
सोच मांझी मुस्काया,
दुःख प्रलय ने अपनी,
भाषा मे कुछ बोला,
सुन मांझी ने अपने,
मन मे साहस तौला,
मांझी को पहचान प्रलय,
फिर तुम कुछ  बोलो,
मांझी है घरती का बेटा,
संग मे होलो,
प्रलय तुम्हारी लहरें,
तट धरती के सारे।
मांझी के अधरों ने,
नूतन गान संवारे।
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लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है।
शिक्षा – स्नातकोत्तर और संगीत है।
कार्यक्षेत्र – सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपको मिले हैं। उपलब्धि संगीत शिक्षक, मालवी नाटक में अभिनय और समाजसेवा करना है। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी का प्रचार-प्रसार और जन कल्याण है। कार्यक्षेत्र इंदौर शहर है। आप सामाजिक क्षेत्र में विविध गतिविधियों में सक्रिय रहती हैं। एक काव्य संग्रह में आपकी रचना प्रकाशित हुई है।

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