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दावत

नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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हमारे गाँव में एक बूढ़े बाबा थे जिनका नाम बनी सिंह था। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तब में सिर्फ दस साल का था। लोग उनकें बारे में बहुत भला बुरा कहते थे और वास्तव में वे थे भी बहुत बूरे। उनके बारे में एक बात तो प्रचलित थीं कि जब उनका परिवार साजे में रहता था तो वही अपने सभी भाईयों में मुखिया थे और उनके भाई उन पर आंख बंद कर के विश्वास करते थे। एक दिन सभी भाईयों ने मिलकर छ: बिघा जमीन खरीदी और बेनामा कराने सभी भाईयों ने बनीं सिंह जो मुखिया थे उन्हें तहसील भेज दिया और कोई भी भाई उनके साथ नहीं गया।बनी सिंह ने बिना किसी को बताए तीन बिघा जमीन अपने नाम करा ली और घर आकर कह दिया कि मैं पिता जी के नाम बेनामा करा आया। सभी ने कहा चलो अच्छा है, आखिर छ: बिघा जमीन खरीद ली चलो बच्चों के काम आएगी। दिन धीरे-धीरे बितते चले गए, ये तीन भाई थे, एक दिन बीच वाला जिसका नाम राज सिंह था कही गया और फिर कभी लौटकर नहीं आया। उसके तीन लडके और दो लडकियाँ थी। एक लड़का पन्द्रह साल जिसका नाम मुकेश था, दूसरा धर्मेश जो बारह साल और तीसरा टिन्नू जो लगभग दस साल का था और दोनों लडकियाँ लता और रेखा और भी छोटी थी। अब बच्चे तो सभी लगभग छोटे ही थे।अब माँ और सबसे छोटे भाई ने कई दिनों तक खोजा और पुलिस में भी कम्पलेन्ट कराई पर कोई सूराक ना मिला जब काफी दिन हो गयें तो माँ और बच्चों ने भी सब्र कर लिया अब गाँव कि औरतें भी मुंह पर ही कहने लगीं कि जिन्दा होता तो आ जाता अब ये चूडियाँ तोड़ डाल, मंगलसूत्र उतार फेक और सिन्दूर मिटा दें पर पत्नी को ऐसा कभी नहीं लगा कि उसका पती नहीं रहा उसकों तो हमेशा यही लगा कि कहीं गया है आ जाएगा। पर बाहर की औरतों के ताने सुन-सुन कर वो भी परेशान थी। उसे भी उनकी बातों पर विश्वास होने लगा कि उसका पति शायद कभी ना आए और वो विधवा कि जिंदगी जीने को तैयार हो गई। अब जैसे ही वह अपनीअपनी माथे कि बिंदिया हटाने चली तभी बडे़ लडके ने उसे रोक दिया और उसका जवाब सुनकर किसी कि कुछ कहने कि हिम्मत ना हुई और जो औरतें वहाँ थी वो भी चुप ही वहाँ से चली गई। उस दिन के बाद उसकी माँ ने कभी भी अपने माथे कि बिंदिया, मांग का सिन्दूर हटाने की बात नहीं कि, बड़े लडके मुकेश ने कहा, पापा ही तो यहाँ नहीं है, मैं और तेरे दोनों छोटे बेटे तो है, तू हमारे ऊपर सुहागन रहेगी, सिन्दूर लगाएगी, मंगल सूत्र पहनेगी और बिंदिया लगाएगी। कुछ दिनों बाद बनीं सिंह का सबसे छोटा भाई जयपाल भी अपनी टयूबेल पर सिंचाई करते समय बिजली से करंट लग जाने के कारण मर गया और उसने भी दो छोटे-छोटे बच्चे छोडे। अब बस सारे बच्चों के ताऊ बनी सिंह ही बचे और बनी सिंह के केवल एक लड़का शिवकुमार था। धीरे-धीरे सभी बच्चे बडे़ हो गयें, लगभग सभी पच्चीस साल के आस पास हो चुकें थे और बनी सिंह बिल्कुल बुड्ढे, अब बटवारे का समय आया क्योंकि सभी भाईयों के बच्चों को उनके हिस्से की जमीन मिलनी थी। सभी खेतों का बटबारा हुआ। उस छ: बिघा जमीन का भी होना था, अब बनी सिंह बोले इस छ: बिघा जमीन में से उस समय तीन बिघा तो मैने अलग ली थी। ये मेरेे नाम पर है और शेष तीन बिघा में से हम सभी बांट लेते हैं। मुकेश जो उस समय सबसे बड़ा था उसे कुछ कुछ याद था कि छ बिघा जमीन साजे में ली गई थी, उसने ये कहा भी पर बनीं सिंह ने कहा तुम छोटे थे तुम्हें कुछ नहीं पता और उसकी बात दबा दि। शिवकुमार को भी सब सच्चाई पता थी पर लालच में उसने कुछ नहीं बताया और बनीं सिंह ने तीन बिघा जमीन कि बेईमानी कर ली, साजे में बनी सिंह ने अपना घर भी बनाया था वो भी ये कहकर ले लिया कि ये मैंने अपने पैसों से बनाया था इसलिए ये भी मेरा है अब बस बनी सिंह के दोनों भाईयों के बच्चों को थोड़ी सी जमीन मिली बाकी कुछ नहीं|बिना बाप के बच्चे अपनी अपनी जमीन पर झोपड़ी डालकर रहने लगे और उसी जमीन पर खेती करने लगे। बनी सिंह को गाँव के सभी लोग बेईमान कहने लगे और बनी सिंह था भी बेईमान। बनी सिंह अब बिल्कुल बुडढा हो गया था। बनी सिंह कि एक आदत और भी थी कि पूरे गाँव में कोई भी खुशी होने पर बनी सिंह के घर में दु:ख मनाया जाता था क्योंकि उसे सब कि खुशी से जलन होती थी। बनी सिंह कि इज्जत इतनी खराब हो चुकी थी कि लोग कहते थे, हे भगवान इसे उठा ले। पर वह भी मरने वाला नहीं था नव्वे साल पार करकर भी नहीं मरा लोगों कि वदुआ का भी उस कोई असर नहीं। अब गाँव के बच्चे और बड़े उसके मुह पर ये कहने लगे कि बाबा अपने मरने कि दावत जल्दी कराओ, बहुत दिनों से दावत नहीं खाई। बनी सिंह उनपर चिल्लाता और गालियाँ देता पर वे भी रोज बनी सिंह से उसके मरने कि दावत मांगते। बनी सिंह ने अपनी जवानी के दिनों में एक जमीन बीस हजार में अपनी ससुराल में खरीदी थी जो अब उसपर सरकारी फैक्ट्री बनने के कारण सरकार ने एक करोड़ में खरीद ली और बनी सिंह को बुढ़ापे में एक करोड़ मिल गयें। अब बनी सिंह ने सोचा कि मेरी एक लड़की जो गरीब घर में है और उसका पति शराबी हैं तो पचास लाख रुपये में उसे दे देता हूँ वो भी अमीर हो जाएगी और खुशी से रहने लगेगी बाकी तो शिवकुमार के है ही। उसने यह बात शिवकुमार को बताई, उसे यह बात पसंद न आई। वह सारा पैसा हडपना चाहता था इसलिए उसने एक योजना बनाई। बनी सिंह बुढा तो था ही इसलिए उसे दिखाई भी कम देता था, शिवकुमार ने बनी सिंह कि चैक बुक से चैक लेकर एक करोड़ रुपये भरे और बनी सिंह से झूठ बोलकर उस पर हस्ताक्षर करा लिए और अपने खाते में चैक लगाकर सारा धन अपने खाते में डाल दिया। कुछ दिनों बाद बनी सिंह अपने पौते को लेकर जो लगभग सोलह साल का था बैंक गया और पचास लाख खाते से निकालने के लिए बैक मेनेजर से बात कि तब बैंक मैनेजर ने बताया कि आपके खाते में तो एक भी पैसा नहीं है, कुछ दिनों पहले आपके दिए चैक के आधार पर हमने एक करोड़ रुपये शिवकुमार नाम के खाते में भेज दिए। इतना सुनते ही बनी सिंह को सब समझ आ गया और तुरंत ही दिल का दौरा पड गया। बनी सिंह को अस्पताल में भर्ती करवा गया। उसके दौरे के बारे में सुनते ही गाँव में खुशी की लहर आ गई परन्तु अभी किसी को बनी सिंह की दावत मिलने वाली नहीं थी। वह बच गया और घर आ गया परन्तु अब उसने खाट पकड़ ली क्योंकि उसे अपने ही लडके की बेईमानी से गहरा सदमा पहुँचा और तब उसे समझ आया कि जैसी करनी बैसी भरनी। अब वह स्वयं भी अपने मरने कि दुआ मांगने लगा पर भगवान भी उसे बुलाना नहीं चाहते थे। वह भी उसे खाट में गला-गला कर उसके किए कि सजा दे रहे थे। लोग अभी भी उससे कहते कि तुम तो बहुत बेशर्म हो दिल के दोरे से भी नही मरे, अरे अब तो मरने कि दावत दो। बनी सिंह को रोज यही ताने सुनने पडते और तो और उसके बहु बेटे भी उसके मुह पर कहते अब तो मर जा बुड्ढे, हम कब तक तुझे खाट पर खाने को दे। लोग रोज उसके पौते से कहते, अरे जल्दी घर जा तेरे बाबा मर गए और वो घर जाता तो बाबा को जिंदा पाता। इसी प्रकार कि मजाक लोग रोज करते। एक दिन पौता खेतों में काम कर रहा था और भी लोग आस पास अपने खेत में काम कर रहे थे, तभी एक आदमी उसके पास आया और बोला तेरे बाबा मर गए जल्दी घर जा। उसके उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और काम करता रहा, आदमी ने कहा, सच में तेरे बाबा मर गए, में मजाक नही कर रहा, अभी गाँव से फोन आया है मेरे पास, तू घर जा। उसे विश्वास न था उसे बस मजाक लग रहा था, पर आदमी के बहुत समझाने पर वह घर जाने को तैयार हो गया, पर उसे अभी भी मजाक लग रहा था, पर जब वह घर पहुंचा उसके बाबा सच में मर चुकें थे और इस तरह गांव के लोगों को बनी सिंह के मरने कि दावत नसीब हुई।

परिचय :- नितिन राघव
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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