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पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
इंदौर म.प्र.

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कथन के शब्द सभी स्नेह के सरोवर हैं!
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

प्रगाढ़ प्रेम प्रकाशित प्रत्येक स्वर-व्यंजन
निजी ममत्व से सुरभित सुबोध संबोधन
सटीक सार समर्पित समस्त उदबोधन
अतुल्य आत्मीयता, अनूप अपनापन

महाविचार सुमुखरित मधुर मनोहर हैं!
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं !

वे प्रश्न और निहित उनमें व्याप्त चिन्ताएं
सुखद सुझाव की छाया में सुप्त इच्छाएं
सुवर्तमान के उपयोग के नियम-संयम
भविश्य के लिए अगणित असीम आशाएं

जो व्यक्त भाव हुए हैं अमिट यशोधर हैं!
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

लगे है जैसे कथन पत्र के रहे हैं बोल
प्रतीत होते वे दुर्लभ लगें बहुत अनमोल
प्रत्येक वाक्य में अनुभूत सूत्र शक्तिमान
रहस्य गूढ़ जगत के विविध रहे हैं खोल

अकथ संदेश हैं अगणित मगर अगोचर हैं!
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

कहीं है क्रोध प्रकट में छिपा है प्यार उसमें
सुखद भविष्य का सुन्दर विचार है उसमें
कटाक्ष तो है मगर कुछ दुलार है उसमें
कहीं है व्यंग्य पर है स्नेह की फुहार उसमें

पिता की डांट में भी प्रेम की पयोधर हैं!
पिता के पत्र पुराने परम धरोहर हैं!

परिचय –  रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’
जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद
कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य
सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा
लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, आलेख आदि।
प्रकाशन ~ अब तक लगभग दो दर्जन साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। पांच काव्य संकलनों का संपादन किया है।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार ~ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेकानेक सम्मान व अलंकरण प्राप्त हुए हैं।
विशेष उपलब्धि ~ हिन्दी और अंग्रेजी का राज्य प्रशिक्षक तथा जूनियर रेडक्रास का राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे। सन्रा १९९२ में राज्यपाल से अवार्ड मिला।
लेखनी का उद्देश्य ~ राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता तथा व्यक्तिगत सर्वांगीण विकास।
पसंदीदा हिन्दी लेखक ~ शिवमंगलसिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, नीरज
विशेषज्ञता ~ मैं सदैव स्वयं को विद्यार्थी मानता आया हूँ।
देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार ~ भारत से मैं असीम प्रेम करता हूँ। धरती पर ऐसा अद्भुत महान देश अन्यत्र नहीं। मुझे हिन्दी बोलने,पढ़ने और इस भाषा में कुछ भी लिखने में बहुत गर्व का अनुभव होता है।
मौलिकता की जिम्मेदारी ~ मैं मौलिकता को लेखन का अनिवार्य अंग मानता हूँ।


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