Friday, November 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पिता का मर्म और कर्म

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)
********************

                                             माँ की ममता की चर्चा तो खूब होती है,पर पिता के मर्म को, उसके कर्म को, उस की अनुभूति को वही समझ सकता है जिसने उसके संघर्षमय जीवन के एहसास को महसूसा हो। ऐसे भाग्यशाली पिता बहुत कम हैं, जिनके बच्चे ऐसे हैं अधिकतर तो जीवन में थोड़ा सा मुकाम पाते ही कह देते हैं, तुमने हमारे लिये किया ही क्या है, नई पीढ़ी की सोच पूरी तरह से आत्मकेंद्रित हो गई है।

पिता सूरज की तरह गर्म हैं पर न हों तो अंधेरा ही है। पिता खुशियों का इंतज़ार हैं, पिता से ही हजारों सपने हैं, बाजार के हर खिलौने अपने हैं।पिता से परिवार हैं, उसी से ही माँ को मिला माँ कहने का अधिकार है। बिन्दी, सुहाग, ममता का आधार है। पिता के फैसले भले ही कड़े हों, पर हम उसी से ही खड़े होते हैं। बच्चे यह बड़े हो कर यह भूल जाते हैं, माँ से जीवन का सार है तो पिता से सारा संसार है। पिता से ही अकेलापन महफ़िल बन जाता है, वो फौलाद की चट्टान है, घुटन में जी कर भी हर घड़ी हँसाता है, पिता से ही सब सामान, रोटी कपड़ा और मकान है, पर वृद्ध रुग्ण होते ही पिता उसके लिये बोझ, भार और अपाहिज हो जाते हैं इन शब्दों से वो कितनी पीड़ा अनुभव करते होंगे, इस को आज की निष्ठुर पीढ़ी कैसे समझ पायेगी, वो भूल जाते हैं, उम्र का यह पड़ाव तो देर सवेर उनकी जिन्दगी में भी आना ही है।

बेटा तो माँ बाप की इच्छाओं का आकाश है, बेटा ही तो वक्त पड़ने पर भूगोल है, इतिहास है, कुछ इस तरह की बात बेटी के बारे में भी कही जा सकती है, बस फर्क इतना ही है, बेटी जो आपके घर के आंगन की महक होती है, उसे अच्छी शिक्षा व संस्कार दे उसकी महक बढ़ा देते हो, उसे उस घर को छोड़कर ही तोे दूसरे घर की बगिया में फूल बन कर खिलना होता है। एक बात यह भी सर्वविदित ही है, जब बेटे मुँह मोड़ लेते हैं तो बेटी चाहे कितनी भी दूर रहती हो,हर हाल में माँ-बाप की ढाल बन जाती है।

वास्तविकता तो यही है कि माँ बाप बेटे से इतनी ज्यादा आशाएं लगा लेते हैं, अपेक्षा रखते हैं, परन्तु जब बेटा वैवाहिक जीवन की अपनी जिम्मेदारी पूरी करते रहने में ही इतना खो जाता है, व्यस्त हो जाता है,कि घर में साथ रहते हुए भी वह माँ बाप के लिये चन्द क्षणों का समय भी नहीं निकाल पाता, तो उन्हें घोर निराशा होती है। माँ बाप बच्चों के लिये अपनी इच्छाओं का दमन कर उनके लिये, उज्ज्वल भविष्य के लिये अपना सर्वस्व लुटा देते हैं, अपने अधूरे छूट गये सपनों को बच्चों में ही ढूंढते है, बस इसी आशा में कि बुढ़ापे का सहारा बन जीवन की सांझ में उजाला लायेगा, मान सम्मान देगा पर यह उसका भृम ही साबित होता है, इसी भृमजाल में ही तो अपने शरीर की चिन्ता किये बिना ही अथक घोर परिश्रम करते हुए भविष्य की आशा की मृगतृष्णा में पूरा जीवन निकाल देता है।

संस्कारों में पला बड़ा बेटा विरासत बन कर समाज के सामने एक पहचान बनाता है, कई बार बेटा ऐसी ऊंचाइयों को छू लेता है कि उसकी पहचान से माता पिता की पहचान बनती है और यह अवसर उनके लिये गर्व, खुशी,अभिमान, सम्मान का होता है, उन्हें लगता है हमारा जीवन सफल हो गया, धन्य हो गया। माँ गर गंगा है तो पिता समर्पण की ऊंचाई है।

इसके विपरीत जब बेटा अपने कर्तव्यों को भूल कर बस औपचारिकतावश ही व्यवहार करता है, कोई दायित्व ही नहीं समझता, नज़र मिलने वाली सम्पत्ति व धन पर होती है, फिर वो पिता एक वसीयत का रूप बन कर रह जाता है, जिसकी उंगलियां थाम कर वो बड़ा हुआ था व मां भी अपनी ममता की झोली को बस खंगालती ही रह जाती है। पिता सख्ती करता है तो सम्भलता भी तो है। जो आंखे बंद होने तक प्यार करे वो मां, लेकिन आंखों में प्रेम न जताते हुए, अंत तक प्रेम करे तो पिता ही तो है।

अर्थी सब की उठती है, पर जब बेटा कन्धा देता है तो वो मौत जिंदगी से बेहतर होती है। बेटा जिये, आगे बढ़े इस के लिये पिता अपनी ही जिंदगी पूरी तरह भूल जाता है, वो मौत से नहीं, बुढ़ापे से डरता है, अपने दूर हो जाते हैं, जिन्दगी दूसरा मौका देती है, पर माता-पिता नहीं।

परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि, लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *